चाणक्य नीति | Chanakaya Niti
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.82 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं राधाकृष्ण श्रीमाली - Pt. Radhakrishn Shreemali
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ समुन्नत चेता स्वाभिमानी राजा प्रवघ सबधी जटिल सम- स्पाओ के उपस्वित होने पर झपने हो भीतर दूसरे प्रतिमानी विचारात्मक मत्र को उत्पन्न कर लिया करे और निगूढ कार्यों के विपय में सबझे पहले उस मत्र के सहारे से सोचा करें । २४ सहाय समदु खसुय ॥ सुख दुख दोनो में अभिन हृदय साथी होकर रहने वाला मनी आदि सहायक कहाता है । २४ नक घक्र पारिघ्रमयति । जमे रथ का अकेला चक रथ को नहीं चला पाता इसी प्रकार राजा तथा मन्िपरिपिदू रूपी दो चक्रो से हीन एकतन राज्य पथ अफायकारी हो जाता है । २६ नासहायस्य मर श्रतित्चय 1 मन्रिपरिपद की वौद्धिक सहायता से हीन अकेला राजा अपने अकेले सीमित अनुभवों के वल से राज जैसे सुदरव्यापी जटिल कर्तव्यों के दिपय मे उचित निर्णय नहीं कर पाता । २७ श्रुतबलमुपघाशुद्ध मा निण कुर्यात । तकशास्न दडनीतिं वार्ता आदि कथाओ में पारगत यथा गुप्त रुप से ली हुई लोभ परीक्षाओ से शुद्ध प्रमाणित व्यक्ति को मत्री नियुक्त करे । २८ मनमूला सर्वारस्भा । भविष्य म किए जाने वाले सब काम मत्र अर्थात् कार्येकम की पूवकालीन सुरिता से ही सुसप न होते है । २६ सबयरलगे कायसिद्धिमवति । काय सबघी हिताहित चिंता रूपी मन को गुप्त रखने काय सिद्ध हो पाता है।
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