संस्कृत - साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास भाग 2 | Sanskrit Sahitya Ka Alochanatmak Itihas Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० संस्कृत-साहित्य का प्रालोचनात्मक इतिहास प्रद्ध तथा प्रवेशक कथावस्तु का विभाजन दृश्य भर सुच्य की दृष्टि से मूलतः अ्रद्धु श्रौर प्रवेशक में हुप्रा । भरत के भ्रनूसार दिवसावसानकायं यद्यड्े नोपपद्यते सर्वस्‌ । प्रद्धुच्छंद कृत्वा प्रवेशकस्तटद्विंघातव्यम ॥ १८.२६ सच्रिहितनाय को डू कर्तव्यों नाटके प्रकरणे वा । परिजनकथानुबन्ध प्रवेशको नाम बिज्ञेय ।। १८.२८ प्रद्धान्तरसन्धिषु च॒प्रवेशकास्तेषू तावन्त ॥। १८.२९ अर्थात्‌ झड्ध में एक दिन की कथा होनी चाहिए । यदि म्रंक में एक पूरे दिन की कथा नहीं भरा पाती तो भ्रद्धू को समाप्त करके शेष कथा को प्रवेशक में रखा जा सकता है । भ्रड्ध श्रौर प्रवेशक में भ्रन्तर यह है कि जिन लोगों के इतिवृत्त के विषय में चर्चा होती है उनकी भूमिका में पात्र रंगमच पर रहे तो वह नाट्चांश श्रद्ध है । उनकी प्रनूपस्थिति में यदि उन लोगों के परिजन या श्रन्य जन उनसे सम्बद्ध कामों को संवाद द्वारा या श्रकेले ही वर्णन करके प्रेक्षकों को सुना दें भ्रभिनय द्वारा समक्षित न करें तो वह नाटचांश प्रवेशक है । अरद्ध में एक दिन मात्र की कथा होती है किन्तु प्रवेशक में एक मास या वर्ष तक की कथा सुनाई जा सकती है । इस प्रकार म्रनेक वर्षों तक की कथा प्रेक्षक जान ले इस बात के लिए प्रवेशक का विशेष महत्त्व है। श्रागे चलकर प्रवेशक के समकक्ष विष्कम्भक की स्थापना हुई। इन दोनों में प्रन्तर यह रहा कि विष्कम्भक उत्तम पात्रों के सम्पकं में झाने वाले मध्यम श्रौर भ्रघम पात्रों के संवाद रूप में होता है श्ौर प्रवेदशक कोरे भ्रघम पात्रों के द्वारा प्रस्तुत होने लगा । प्रवेशक में उत्तम पात्रों के का्यकलाप की चर्चा नहीं होती थी क्योंकि भ्रघम पात्रों का उत्तम पात्रों के सम्पर्क में श्राना सम्भव नहीं था । प्रवेशक आर विष्कम्मक को श्रर्ोपक्षेपक नाम दिया गया । श्रर्थोपक्षेपक कोटि में श्रागे चलकर चूलिका शभ्रद्धुमुख श्रौर श्रद्धावतार को भी सम्मिलित किया गया | इनमें से चूलिका वह संसुच्य है .जिसमें कोई पात्र नेपथ्य में रह कर किसी घटना की सूचना देता है । चूलिका का सुच्य होना स्पष्ट है । इसके द्वारा किसी श्रद्ध के मध्य में किसी तात्कालिक महत्त्वपूर्ण वत्त की सूचना देकर परवर्ती कथाप्रवाह में एक नया मोड़ ला दिया जाता है । श्रद्धुमुख श्रौर ध्रद्धावतार में प्रवेदक विष्कम्भक श्रौर चूलिका नहा १. चूलिका का श्रावण प्रारम्भ में किसी ऐसे पात्र के द्वारा किया जाता था जो नाट्यमण्डप के दिखर पर होता था । चूलिका शिखर को कहते हैं । परवर्ती युग में नेपथ्य से चूलिकाश्नावण होने लगा ।




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