प्रेमचंद रचनावली खण्ड - १७ | Premchand Rachanawali Khand - 17

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Premchand Rachanawali Khand - 17 by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 प्रेमचंद रचनावली-17 सच्चे दिलेर उनमें दो-ही चार होंगे जो आज़ाद की तलवार का सामना करें। मौत से लड़ना दिल्लगी नहीं है कलेजा चाहिए। दूसरे दिन आज्ञाद हथियार बांधकर चले तो रास्ते में बांके मिल गए और दोनों साथ-साथ टहलते हुए दरगाह पहुंचे। नौचंदी जुमेरात बनारस का बुढ़वामंगल मात चारों तरफ चहल-पहल कहीं तमाशाइयों का हुजूम हटो-बचो की धूम आदमी टूटे पड़ते है कोसों का तांता लगा हुआ है मेवे वाले आवाज लगा रहे हैं तंबोली बीड़े बना रहे हैं गड़ेरियां हैं केवड़े की रेवड़ियां हैं गुलाब की। आज़ाद घूरते-घारते फाटक पर दाखिल हुए तो देखा सामने तीस-चालीस आदमियों का गोल है। बांके ने कान में कहा कि यही हजरत हैं देख लीजिए दंगे पर आमादा हैं या नहीं। आज्ञाद-भला यहां तुम्हारी भी कोई जान-पहचान है? हो तो दस-पांच को तुम भी बुला लो भीड़-भड़क्का तो हो जाय। लड़ने वाले हम क्या कम हैं-मगर दो-चार जमाली खरबूजे भी चाहिए डाली की रौनक हो जाय। धर बांके-अभी लाया आप उहरें मगर बाहर टहलिए तो अच्छा है यहां जोखिम आजाद फाटक के बाहर टहलने लगे। फिकैत ने जो देखा कि दोनों खिसके तो आपस में हाड़ियां पकने लगीं--वह भगाया वह हटाया भागा है उनके साथियों में से एक ने कहा-अजी वह भागा नहीं है एक ही काइयां है किसी टोह में गया है। एक बिगड़ेदिल बाहर गये तो देखा बांके पश्चिम क़ी तरफ गर्दन उठाये चले जाते हैं और मियां आज़ाद फाटक से दस कदम पर टहल रहे हैं। उलटे पांव आकर खबर दी-उस्ताद बस यही मौका है चलिए मार लिया है बायें फाटक से चढ़ दौड़े। ठहर बे ठहर। बस रुक जा आगे कदम बढ़ाया और ढेर हुए हिले और दिया तुला हुआ हाथ। याद हैं कि नहीं आज नौचंदी है। लोगों ने चारों तरफ से घेर लिया। बांके का रंग फेंक गजब हो हो गया अब कुत्ते को मौत मरे। किस- किससे लडूंगा? एक की दवा दो दो की सौ। मियां आज़ाद को कोई खबर कर देता तो कह झपट ही पड़ते मगर जब तक कोई जाय-जाय हमारा काम तमाम हो जाएगा। एक यार ने बढ़कर बेचारे मुसीबत के मारे बांके के एक लठ लगा दिया बाएं हाथ को हड़ी टूट गई। गुल-गपाड़े की आवाज आजाद ने भी सुनी। भीड़ काटकर पहुंचे तो देखा बांके फंसे हुए हैं। तलवार को टेका और दन से उस पार हुए। खबरदार खिलाड़ी हाथ उठाया और मैंने टेटुआ लिया। बांके के दिल में ढाढस हुआ जान बची नई जिंदगी हुई। इतने में मियां आज्ञाद ने तलवार म्यान से निकाली १और पिल पड़े। तलवार का चमकना था कि फिकैत के सब साथी हुई हो गए मैदौन खाली मियां आज़ाद और बांके एक तरफ फिकैत और दो साथी दूसरी तरफ बाकी रंफूचक्कर। एक ने आज़ाद पर तमंचा चलाया मगर खाली गया। आजाद ने झपटकर उसको ऐसा चरका दिया कि तिलमिला कर गिर पड़ा। दूसरे जवान दस कदम पीछे हट गए। बांके भी खिसक गये। अब आज्ञाद और फिकैत आमने-सामने रह गए। वह कड़ककर झुका उन्होंने चोट रोककर सिर पर हाथ लगाना चाहा उसने रोका और चाकी का हाथ




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