बच्चों के रोग और उनका इलाज | Bachchon Ke Rog Aur Unakaa Ilaaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ बच्च्चां के रोग योर उनका इलाज है कि प्राचीन चिकित्सक छोटे बच्चों को छोषधि देना उचित नहीं समभते थे । सौंम्य गुणवाली आऑपधियाँ उचित मात्रा में बच्चां कोदी जा सकती हैं। परन्तु ऑपधि देन में अन्घाधुघ नहीं मचाना चाहिए। बच्चों की £्कृति बड़ी कोमल होती है; स्नायुएं कोमल हती हैं, तेज ऑषधियों से उन्हें झधिक हानि की सम्भावना रहती है. । बच्चों के लिए औषधि को मात्रा बच्चों की ऑआपषधि के विषय में सब से आवश्यक बात मात्रा का ज्ञान है । जितनी दवा बड़ों का दी जातों है, उतनी ही बच्चों का नहीं दी जा सकती, आर न तो उतनी तेज दवा दा जा सकती है जितनी तेज बड़े बर्दार्त करते हैं । बच्चे कामल होते हैं, उनका स्वभाव कं मल होता है इस कारण उनके लिए आपधि की मात्रा थोड़ी होती है साथ हो प्रायः सभी तरदद की दवा मिश्री, माँ का टूघ, शहद या आवश्यकता- नुसार ऐसी हो मोठी च.जां में दी जाती है । जसे-जैसे बच्चे को अवस्था बढ़ती जाती है जैसे-वैसे उनकी अआंपधि को मात्रा भी बढ़ती जाती है । पहले महीने में बच्चे को आधी रत्ती काप्ठ आपधि देनो चाहिए । इसी प्रकार प्रति मास आधी-झाधोी रत्ती मात्रा बढ़ाता जाय । १ वष के वालक का ६ रत्ती आपधि देनी चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक चप ६-६ रत्ती की वृद्धि करनी चाहिए । सोलह वष के बाद मात्रा निश्चित हो जाती है । फिर कोई परिवतन*नहीं होता | यह आओपधि को मात्रा एक अन्दाज से शास्तानुकूल लिखी गई है। यह अधिक से अधिक मात्रा है ।्ोषधि का प्रयोग देश, काल, वय, स्वास्थ्य, शक्ति ादि का विचार कर के उतना ही करना चाहिए जितना उचित हे । काढ़े की मात्रा चूण से चौगुनी रखी जा सकती है. |




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