आधुनिक हिंदी काव्य में क्रांति की विचारधारा | Aadhunik Hindi Kavya Me Kranti Ki Vichardhara

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Aadhunik Hindi Kavya Me Kranti Ki Vichardhara by उर्मिला जैन - Urmila Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बब् पे क्रान्ति... . ७ अपमानित करता है, तो अत्याचारी के प्रति घोर इणा हो जाती है और यह छणा विरोध, विद्रोह तथा क्रान्ति के रूप में झलक उठती है । जनता दुःशासन का सदा --. विरोध करती है और इस प्रकार क्रान्तियाँ युग-घुंग से होती आयी राजनीतिक और आर्थिक कारण 'परतन्त्र देशों में क्रान्ति का सुख्य कारण राजनीतिक और आर्थिक होता है' | अत्याचार और शोषण की भीषणता असझ्य होने पर सहनेवाला सजग हो जाता है 1 यहद्द सजगता अत्याचार का विरोध करने में प्रकट होती है । इस विरोध से अत्याचारी में अधिक भीषण प्रतिक्रिया होती है । प्रतिक्रियावश वह और भयानक हो जाता है । सजग मानवता को वह असहा लगती है ओर वह शासन-तन्त्र को चकनाचूर कर नयी व्यवस्था स्थापित करना चाहती है । इसलिए वे राज्यक्रान्ति में बासन तन्त्र को चूर-चूर कर नया शासन स्थापित करना चाहते हैं । मास ने म्यूगलमान को कभी छिस्ा था “अब तो क्रान्ति का काम है उस यन्त्र को चूर-चूर कर देना | विद्व में जितनी राज्यक्रान्तियाँ हुई हैं, सब के मूल में अत्याचार, अन्याय और अपमान का विरोध भाव रहा है। यह विरोध भाव अपनी उम्रता सें बड़ा भयानक होता है और इस मयानकता को अत्याचारी सह नहीं पाता, वह टूट जाता है और उसके ध्वस्त शासन की 'राख पर नयी शासन व्यवस्था उगती है । राज्य-क्रान्ति की उत्पत्ति का बड़ा सुन्दर स्वरूप जवाहरलाल नेहरू ने “विद्व इतिहास की झलक' में अंकित किया है, “लेकिन कान्तियाँ और ज्वालामुखी पहाड़ बिना कारण या विना बहुत दिनों की तैयारी के एकाएक नहीं फूट पड़ते । हम एकाएक होनेवाले विस्फोट ( धड़ाके ) को देखकर ताज्जुव करते हैं, लेकिन जमीन की सतह के नीचे युगों तक बहुत-सी ताकतें आपस में टकराया करती हैं और आग में सुलगा करती हैं । आखिर में ऊपर की पपड़ी उसको ज्यादा देर दबाकर नहीं रख सकती और ये ज्वालाएँ आकाश तक उठने- वाली विकट लपरों के साथ फूट पड़ती हैं और पिघलता हुआ पत्थर ( लावा ) पहाड़ पर से नीचे की तरफ ब्रहने लगता है । ठीक उसी तरह वे तख्तें, जो आखिरकार, क्रान्ति की शक्ल में जाहिर होती हैं, समाज की सतह के नीचे वर्षों तक खेला करती है | युगों तक अत्याचार, अन्याय सहन करने के वाद क्रान्ति फूटती है ।॑ जनता अव्याचार के मूल को मिटाने के लिए हिंसा अथवा अहिंसा का, यथापरिस्थिति आलम्चन करती है | स्वतन्त्रता के लिप, क्रान्ति किसी-किसी देद्य में स्वतन्त्रता के लिए. राज्यक्रान्ति होती है । भारत उसका ज्वलन्त उदाहरण है । ब्रिटिश छासन के अत्वाचार ने जनता में विरोध पैदा किया और ६. न्तान्तदाद--विश्वदाथ राय, पू० द० | नल नकेल गद्य मं न ाहिन्त आर है माचा रवामा सहजासन्द्, छ० ५ न गा डश * घिरदानदस बचत टूलद:ापजवाहरलाल नहर, पृ “श१ 1




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