जैन लॉ | Jain Law

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १९ झौर अनुभवी विद्वानों की एक समिति स्थापित हुई जिसने प्रारम्भ में झच्छा काम किया परन्तु झ्रन्तत: झअमेक कारणों, जैसे दूर देशा- न्तरों से सदस्यां की एकत्रता कष्ट्साध्य होना इत्यादि, के उपस्थित होने से यह कमेटी भी अपने उददश्य को पूरा न कर सकी । जब यह दशा जैन-समाज की बतमान समय में है ता इसमें क्या श्याश्चर्य हैं. कि १८६७ ई० में कलकत्ता दाइकाट ने जैनियें पर हिन्दू-लाँ को लागू कर दिया (मददावीरप्रसाद बनाम मुसस्मात कुन्दन कुँबर ८ वीक रिपाटेर प्र० ११६ ) |. छाटेलाल व० छुन्नू- लाल ( ४ कलकत्ता प्र० ७४४ ); बचेवी ब० मकलनलाल ( हे इलाहाबाद प्र८ ४५ ); पेरिया अम्सानी ब० कृष्णा स्वामी ( १६ मदरास १८२ ) व मण्डित कुमार ब० फूलचन्द ( २ कलकना वी० नोट्स प्र० १५४ ) ये सब मुकदमे हिन्दू-लाॉं के श्नुसार हुए भार ग़लत निर्णय हुए क्यांकि इनमें जैन रिवाज ( नीति ) प्रमाणित नहीं पाया गया ध्ोर जा मुकदमें सद्दी भी फसल हुए# वह भी वास्तव में गलत ही हुए ! क्योंकि उनका निशेय मुख्य जैन रिवाजों की आधी- + उदादरणाध दखा-- कक शिवसिंह राय ब० दाखों १ इत्टा० इस प्ी० का०; अस्सावाई ० गोपिन्द २३ वस्बई २१७; लक्ष्मी चन्द बनाम गट्टोबाई ८ इत्टा० ३98; मानक- चन्द रोलेचा ब० जगत सेठानी प्राण कुमारी बीबी १७ कलकत्ता १५प; साह ना शाह ब० दीपाशाह पश्वाद रिकाउ ५8०९ न० १४ ; राम्भूनाथ ब० लान- चन्द १६ इला० ३७६ ( जिसका एक देश सही फंसा डुआ ); हरनाभ- प्रसाद ब० सण्डिठदास २७ कछ० ३७३४; मनाहरखाल ब० बनारसीदास रद इत्टा० प्र; श्रररफी कुँग्रर ब० रूपचन्द २० इला० 1६७; रूपचन्द च० जम्ब अलाद ३रे इला० रक्ष७ मी० की ०; रूपभ ब० चुन्नीठात्ट अस्वूसेठ १६ बस्बद ३७७; सु० साना ब० सु० इन्दानी बहू ७८ इंडियन केसेज (नाग- पुर ) ४६१; मौजीलाल ब० गोरी बहू सेकेण्ड अपीठ न० ४१६ (१८९७ नाग युर जिसका दृवाजा इंडियन केसेज् ७८ के पू० ४६१ में है )।




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