जैन लॉ | Jain Law
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १९
झौर अनुभवी विद्वानों की एक समिति स्थापित हुई जिसने प्रारम्भ
में झच्छा काम किया परन्तु झ्रन्तत: झअमेक कारणों, जैसे दूर देशा-
न्तरों से सदस्यां की एकत्रता कष्ट्साध्य होना इत्यादि, के उपस्थित
होने से यह कमेटी भी अपने उददश्य को पूरा न कर सकी । जब
यह दशा जैन-समाज की बतमान समय में है ता इसमें क्या
श्याश्चर्य हैं. कि १८६७ ई० में कलकत्ता दाइकाट ने जैनियें पर
हिन्दू-लाँ को लागू कर दिया (मददावीरप्रसाद बनाम मुसस्मात
कुन्दन कुँबर ८ वीक रिपाटेर प्र० ११६ ) |. छाटेलाल व० छुन्नू-
लाल ( ४ कलकत्ता प्र० ७४४ ); बचेवी ब० मकलनलाल ( हे
इलाहाबाद प्र८ ४५ ); पेरिया अम्सानी ब० कृष्णा स्वामी ( १६
मदरास १८२ ) व मण्डित कुमार ब० फूलचन्द ( २ कलकना वी०
नोट्स प्र० १५४ ) ये सब मुकदमे हिन्दू-लाॉं के श्नुसार हुए भार
ग़लत निर्णय हुए क्यांकि इनमें जैन रिवाज ( नीति ) प्रमाणित नहीं
पाया गया ध्ोर जा मुकदमें सद्दी भी फसल हुए# वह भी वास्तव में
गलत ही हुए ! क्योंकि उनका निशेय मुख्य जैन रिवाजों की आधी-
+ उदादरणाध दखा-- कक
शिवसिंह राय ब० दाखों १ इत्टा० इस प्ी० का०; अस्सावाई ०
गोपिन्द २३ वस्बई २१७; लक्ष्मी चन्द बनाम गट्टोबाई ८ इत्टा० ३98; मानक-
चन्द रोलेचा ब० जगत सेठानी प्राण कुमारी बीबी १७ कलकत्ता १५प; साह ना
शाह ब० दीपाशाह पश्वाद रिकाउ ५8०९ न० १४ ; राम्भूनाथ ब० लान-
चन्द १६ इला० ३७६ ( जिसका एक देश सही फंसा डुआ ); हरनाभ-
प्रसाद ब० सण्डिठदास २७ कछ० ३७३४; मनाहरखाल ब० बनारसीदास
रद इत्टा० प्र; श्रररफी कुँग्रर ब० रूपचन्द २० इला० 1६७; रूपचन्द
च० जम्ब अलाद ३रे इला० रक्ष७ मी० की ०; रूपभ ब० चुन्नीठात्ट अस्वूसेठ
१६ बस्बद ३७७; सु० साना ब० सु० इन्दानी बहू ७८ इंडियन केसेज (नाग-
पुर ) ४६१; मौजीलाल ब० गोरी बहू सेकेण्ड अपीठ न० ४१६ (१८९७ नाग
युर जिसका दृवाजा इंडियन केसेज् ७८ के पू० ४६१ में है )।
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