हिंदी महाकाव्य और महाकाव्यकार | Hindi Mhakavyaa Aur Mhakavyakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी महाकाव्य एवं महाकाव्यकार श्र यात्रा, तथा श्रतु वर्णन दादि धारा श्रनुप्रवेश दो जाता है'शाजकल पुरातन श्रादर्शों का श्रनुसरण स्पष्ट रूप से नहीं किया जा रहा है त्रादर्श में परिवर्दन श्रौर संशोधन हो रहे हैं नवीन झ्ाद्शों की सष्टि भी की जा रही है।” - श्री चेमचन्द्र “सुमन” तथा योगेन्द्कुमार मल्लिक (“साहित्य विवेचन” से) “मद्दाकाव्य के लिये चार वातों के सिर्वाइ की श्रपूव क्षमता कवि में होनी चाहिये--(१) प्रबन्ध वद्ध कथानक (९ चरित्र चित्रण (३9 दृश्य वर्णन (४) रस ! कथानक पहली श्रावश्यकता है; श्रौर संक्षेप में कहना न्वाहैं तो मद्दाकाव्य में कथानक विराट हो, साथ ही कान्यात्व महान हों | अवन्ध निर्वाद आवश्यक है | --श्री चिश्चम्भर “मानव” “खड़ी बोली के गौरव ग्रन्थ” से । प्मद्दाकाव्यों में दो तत्व प्रमुख हैं । एक॒है. उसका संघटन,_आौर दूसरी उसका वुग्रए । मदाकाव्य की रचना सगंवद्धत्होती है । + सग का झथ श्रध्याय है । कुछ सगों में कथा को विभाजित करके उसका वणन किया जाता है । कथा का खण्ड कर लेने से उसका वर्णन करने में सुगमता होती थी | मददाकाव्य के श्राठ सर्ग हों”''सर्ग का लक्य यही जान पढ़ता है कि कथा का सुमीते के श्रनुसार विभाजन करके उनका विधान करना” एक सर्ग में एक दही छुन्द का व्यवद्दार किया जाय, पर श्रन्त में छुन्द बदल ' दिया जाय, पर महाकाव्य के किसी सर्म में यदि विविध छन्द रख दिए जायें, तो कोई बात नहीं; 2६ पर प्रत्येक सर्ग में ऐसा करने से प्रवाई खश्डित हो जाता है। सर्गों में चरितनायक्र की कथा शवश्य झानी चाहिए और श्रन्त में श्रागे की कथा का मास भी मिलना चाहिए ऋमवद्धता बनी रहे | प्रवन्ध के विचार से काव्य-पाठक को कथा के क्रम से ।' परिचित होना चाहिए । मद्दाकाव्य में रमणीयता का विशेष ध्यान रखा 1 जाता है । इस दृष्टि से मददाकाव्य घटनात्मक एवं वर्णनात्मक दोनों हो दोता मन मसल सिर रवि स्टिटिटिसग ४. +“सर्गबन्घो मददाकाव्यमू साहित्य दपण ु दी >( “तानाइतसमयः क्वापिं सर्गः कश्चस दृश्यते”--साहित्य दपण न ब जा




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