श्री जवाहर किरणावली - भाग 23 : जामनगर के व्याख्यान | Jawahar Kirnawali Kiran 23 Jamnagar Ke Vyakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शत्मा 'और परमात्मा .] कि
में विंचित्रता कैसे दोती ? चीज के भाव में दरियाली नहीं
होती, पानी चाद्दे कितना ही चरसे । इस प्रकार कार्य को देख
कर कारण का पता लगा लिया जाता है । दरियाली को देग्व-
कर जाना जा सफता है कि यहां चीज मीजूद थे 'पोर जैसे
यीज थे, पानी शादि का सयोग मिलने पर देसा दी इचा
डगा है ।
चस,यहदी बात करें के सम्बन्ध सें भी सममा लेना चाहिए ।
यों तो फर्म के बहुत-से भेद हैं. मगर मध्यम रूप से छाठ
भेद किये गये हैं । जेंनो का कमसादित्य बहुत विशाल हैं और
उसमें कमें के घिपय में बहुत विचार किया गया दूँ । श्वेताम्चर-
दिगम्चर प्मादि सम्प्रदायों में श्मनेक छोटी-मोटी बातों से मतभेद
है, मगर कर्म के झ्ाठ भेदों में तथा इनके कार्य फे घिपय में
किसी प्रकार का मतभेद नहीं हैं ।
इन 'माठ कमों में चार श्रशुभ है और चार शुभाशुभ डैं।
सगए शास्त्र का फ़थन है कम मात्र का, फिर चाहे वह शुभ दो
या शुभ, स्याग करना ही उचित है । ऐसा करने पर परमात्मा
का साक्षात्दार इता है | यों तो 'मास्मा स्वय परमात्मा ही
है । फर्म फे कितने हो छावरण '्ात्मा पर चढ़े दो, शपने
स्वरूप से घद्द परमात्मा ही हैं । शुद्ध संग्रदनय के मत से “एस
आया” पर्थात् आत्मा एक है, इस चृष्टिकोण फे 'अजुसार थामा
और परमात्मा में कोई भेद नदीं दै । पपना 'मात्मा भी परमात्मा
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