ब्रह्मसूत्रा | Brahmasutrani

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Brahmasutrani by खेमराज श्रीकृष्णदास - Khemraj Shrikrashnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 सुर आथ ब्रद्मसूत्राणि माषादीकासहितानि । प्रथमो5ध्याय: १. प्रथम पाद । ड#-अथातों बह्मजिज्ञासा ॥ १ ॥ प्रणस्थ सच्चिदानंदं गुरूं चाज्ञाननादाकस्‌ ॥ सारा घ्रह्मसुन्ाणां कथयासि यथासति ॥ १ ॥ इस सूत्रके-अथ अतः त्रह्माजेज्ञासारेयद तीन पद हैं ॥ अथ शब्दका आनंतर्य अर्थ हे । अतः शब्दका देत अथ है । त्रह्मजिज्ञासा शब्दूका अर्थ त्रह्म़को विपय करनेवाली इच्छा है । कतंदय पदका अध्यादार करना ॥ तथाच ॥ यर्मात्‌ अधिद्देघादिकोंका फल जो स्वगांदिक सो अनित्य हे तस्मात घर्मजिज्ञासाके अनंतर अथवा साधनसंपत्तिके अनंतर त्रह्मकी जिज्ञासा ( जाननेकी इच्छा ) करनी अथवा ब्रह्कका विचार करना यह सूनका साराथ॑ है ॥ 3 ॥ प्रथम तब्में कहा है एके अह्मकी जिज्ञासा सुसुझु पुरुपकों करने- योग्य हे तिस त्रह्मका लक्षण क्या है अतः भगवान सूचकार अ्रह्मको , तटस्थ लक्षण कहते है ॥




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