विजय यात्रा | Vijay Yatra

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Vijay Yatra by हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीन १ ट् के थि रे आलोक भगवान ने कहा-गोतम ! जीव त्रिकाछवर्ती है- शाश्वत है । इस््रिया दप्ते नहीं जान सकतीं। वह अरूप है; इत्द्रिया सरूप को ही जान सकती है। मानसिक च्वढता रहते हुए आत्मा या सत्र की अनुभूति नहीं होती। वह अनन्त ज्योतिर्मय जीव, शरीर, इन्द्रियि और मन से परे है।




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