सुख शर्वरी | Sukh Sharbari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9 खुखशवबरी ।
लड़का-छठडकों को संग लेकर इसके बाप घर से भागे थे; पर मांग
में गाते आते उनकी खत्यु हुई । ”
पथिक ने अपने मन में कद ,--“बस अब कहां जाता है ! वह .
मारा | ! ! ” फिर प्रगर में बुद्धिया से बोला,--“हां | ये छोंग
ज्ञाते क्द्दां थे ? ”
_... चुद्धा,-''यह बात यह नहीं जानती । कदाचितू वे कोई मित्र
के घर जाते थे । क्यों बेटा ! घनिकों को दूसरों पर दया नहीं
झाती १ ”
_ पथिंक,--“'यहद बात क्योंकर कहूँ, सदा से तो दुख भोग
रहा हूं।” त
वद्धा,--'हां भाई | ठीक ही तो है ! दम-द्रिद्रों के पास क्या
. धरा है ? तो भी द्या-मया जानती हूं । किसीका बुरा नहीं
ेतती, जौर देखों न ! उस बूढ़े बियारे का चालक देखकर
जञमोदार की आंख इसी प्रर गड़ गई ! पक
पथिक,--''तुम्दें खूब दया-सया है ! भाग्यों से तुम्हारा आश्रय
_ मिला, इसीसे शाण बचे । अग्तक में तुम्दारे इस चर्खे को तरह
घूम रहा था । गच्छा ! गलाह के फजल से छड़का जीता रहेगा 1”
वद्धा,--''ठीक कहते हो, बेटा ! ठीक है ! कुछ जंतर-मंतर दे
सकते हो, जिसमें यह अच्छा रहे |”
.. पथिक,--''हाँ हां ! जब सबेरे जाऊंगा, तथ तुम्हें कुछ दे.
_. ज्ञाऊंगा । ”
.. चृद्धा ने संतुष्ट होकर पथिक को फल मूल आदि आहार देकर
_'अतिथिसत्कार किया । पथिक मोजनों को आत्मसातू करके
चते धिचारते सोगया ।
अब जल -चायु भी शान्त हुई थी । मण्डकों वो ''टरस्कों
_ ट्रकों” चाली ककश ध्वनि कानों में आने ठगी और जल का
_ प्कलठ-कल” शब्द सुनाई देने लगा । 'घीरे धीरे बृद्टि थमी | अब.
_ अदगालों का ककशे शब्द गगनस्पशं करने लगा ।
सेफ िटरेरक जि ्टिकन .
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