सुख शर्वरी | Sukh Sharbari

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Sukh Sharbari by श्री किशोरीलाल गोस्वामी shri kishorilal goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 खुखशवबरी । लड़का-छठडकों को संग लेकर इसके बाप घर से भागे थे; पर मांग में गाते आते उनकी खत्यु हुई । ” पथिक ने अपने मन में कद ,--“बस अब कहां जाता है ! वह . मारा | ! ! ” फिर प्रगर में बुद्धिया से बोला,--“हां | ये छोंग ज्ञाते क्द्दां थे ? ” _... चुद्धा,-''यह बात यह नहीं जानती । कदाचितू वे कोई मित्र के घर जाते थे । क्यों बेटा ! घनिकों को दूसरों पर दया नहीं झाती १ ” _ पथिंक,--“'यहद बात क्योंकर कहूँ, सदा से तो दुख भोग रहा हूं।” त वद्धा,--'हां भाई | ठीक ही तो है ! दम-द्रिद्रों के पास क्या . धरा है ? तो भी द्या-मया जानती हूं । किसीका बुरा नहीं ेतती, जौर देखों न ! उस बूढ़े बियारे का चालक देखकर जञमोदार की आंख इसी प्रर गड़ गई ! पक पथिक,--''तुम्दें खूब दया-सया है ! भाग्यों से तुम्हारा आश्रय _ मिला, इसीसे शाण बचे । अग्तक में तुम्दारे इस चर्खे को तरह घूम रहा था । गच्छा ! गलाह के फजल से छड़का जीता रहेगा 1” वद्धा,--''ठीक कहते हो, बेटा ! ठीक है ! कुछ जंतर-मंतर दे सकते हो, जिसमें यह अच्छा रहे |” .. पथिक,--''हाँ हां ! जब सबेरे जाऊंगा, तथ तुम्हें कुछ दे. _. ज्ञाऊंगा । ” .. चृद्धा ने संतुष्ट होकर पथिक को फल मूल आदि आहार देकर _'अतिथिसत्कार किया । पथिक मोजनों को आत्मसातू करके चते धिचारते सोगया । अब जल -चायु भी शान्त हुई थी । मण्डकों वो ''टरस्कों _ ट्रकों” चाली ककश ध्वनि कानों में आने ठगी और जल का _ प्कलठ-कल” शब्द सुनाई देने लगा । 'घीरे धीरे बृद्टि थमी | अब. _ अदगालों का ककशे शब्द गगनस्पशं करने लगा । सेफ िटरेरक जि ्टिकन .




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