श्रंगार रास - भावना और विश्लेषण | Sringar Ras Bhawana Aur Vislesan

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Sringar Ras Bhawana Aur Vislesan by रमाशंकर - Ramashanker

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ श्यूगार रस भावना झ्ौर विश्लेषण नहीं कि भारतीय दृष्टि ने रस के सभी पहलुप्रों का व्यापक श्रौर गम्भीर दृष्टि से पुरण एवं विद्वद चिवेचन किया है । उसकी रसाराधना किसी श्रग से परिहीन नहीं हुई । उसने उसके लिए रुचि-वेचित्य के कारण ऋजु-कुटिलि नाना पथ श्रपनाए नाना विवेचन प्रस्तुत किये पर उसके सारभाग को श्रांखों से झोभकल कभी नहीं होने दिया । यहीं उसके चिन्तन की अखण्डता है जो कहीं व्याहत नहीं हुई । इसी बात को ध्यान में रख कर मैंने ऐसे सवंगामी संज्ञा शब्द के विवेचन में सावधानी बरतने भ्ौर उसे उसकी पाश्वंभूमि के सन्दर्भ में रखकर देखने को कहा है । मैं यहां केवल रस शब्द को लेकर उसके विभिन्न प्रसंगों एवं प्रयोगों के ्राघार पर विवेचन करता हुआ किसी एक सामान्य निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयत्न करू गा । स्थूगार की पृष्ठभूमि के रूप में यह विवेचन झत्यन्त झावश्यक है । रस दाब्द का विभिन्न झर्थों में संकेत श्रारम्भ से ही मिलता है । बैदिक-साहित्य में यह दाब्द नाना श्रर्थों में प्रयुक्त हुआ है। यहां प्रसंग से सम्बद्ध कुछ भ्रर्थ प्रस्तुत हैं-- १. वेदिक साहित्य में रस दाब्द सार के प्रर्थ में बहुत प्रयुक्त हुपा है। जिस पदार्थ को सारभूत एवं श्रत्यन्त महत्व का बताना हुआ रस शब्द से श्रभिधान कर दिया-- क यो नो रसं दिप्सति पित्वो अग्ते यो श्रदवानां यो गवां यस्तनूनाम्‌ । रिपुस्तेन स्तेयक्ृदभ्रमेतु नि ष हीयतां तन्वा तना च ॥ -नकरवेद ७1१०४1१० ख झननात्परिश्रतो रसं ब्रह्मरा । -्यजुवंद १६1७४ ग एपां भुतानां पूथिवी रस पुथिव्या आपो रसः । श्रपामोषधघयो रस भौषधीनां पुरुषों रस पुरुषस्थ वाय्रसों वाच शऋष्रसः ऋच साम रस साम्न उद्गीधो रस । -+छान्दोग्य १1१९ घ ते वा एते रसानां रसा । वेदा हिं रसा । -छान्दोग्य २५४ ड स एतां त्रयीं विद्यामम्यतपत्‌ तस्यास्तप्यमानाया रसानु -छान्दोग्य ४1१७४ व स एप । -तत्त०उप० २१२ छ रस सार चिदानन्द-प्रकाद ॥ पद




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