श्रंगार रास - भावना और विश्लेषण | Sringar Ras Bhawana Aur Vislesan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25.37 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ श्यूगार रस भावना झ्ौर विश्लेषण नहीं कि भारतीय दृष्टि ने रस के सभी पहलुप्रों का व्यापक श्रौर गम्भीर दृष्टि से पुरण एवं विद्वद चिवेचन किया है । उसकी रसाराधना किसी श्रग से परिहीन नहीं हुई । उसने उसके लिए रुचि-वेचित्य के कारण ऋजु-कुटिलि नाना पथ श्रपनाए नाना विवेचन प्रस्तुत किये पर उसके सारभाग को श्रांखों से झोभकल कभी नहीं होने दिया । यहीं उसके चिन्तन की अखण्डता है जो कहीं व्याहत नहीं हुई । इसी बात को ध्यान में रख कर मैंने ऐसे सवंगामी संज्ञा शब्द के विवेचन में सावधानी बरतने भ्ौर उसे उसकी पाश्वंभूमि के सन्दर्भ में रखकर देखने को कहा है । मैं यहां केवल रस शब्द को लेकर उसके विभिन्न प्रसंगों एवं प्रयोगों के ्राघार पर विवेचन करता हुआ किसी एक सामान्य निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयत्न करू गा । स्थूगार की पृष्ठभूमि के रूप में यह विवेचन झत्यन्त झावश्यक है । रस दाब्द का विभिन्न झर्थों में संकेत श्रारम्भ से ही मिलता है । बैदिक-साहित्य में यह दाब्द नाना श्रर्थों में प्रयुक्त हुआ है। यहां प्रसंग से सम्बद्ध कुछ भ्रर्थ प्रस्तुत हैं-- १. वेदिक साहित्य में रस दाब्द सार के प्रर्थ में बहुत प्रयुक्त हुपा है। जिस पदार्थ को सारभूत एवं श्रत्यन्त महत्व का बताना हुआ रस शब्द से श्रभिधान कर दिया-- क यो नो रसं दिप्सति पित्वो अग्ते यो श्रदवानां यो गवां यस्तनूनाम् । रिपुस्तेन स्तेयक्ृदभ्रमेतु नि ष हीयतां तन्वा तना च ॥ -नकरवेद ७1१०४1१० ख झननात्परिश्रतो रसं ब्रह्मरा । -्यजुवंद १६1७४ ग एपां भुतानां पूथिवी रस पुथिव्या आपो रसः । श्रपामोषधघयो रस भौषधीनां पुरुषों रस पुरुषस्थ वाय्रसों वाच शऋष्रसः ऋच साम रस साम्न उद्गीधो रस । -+छान्दोग्य १1१९ घ ते वा एते रसानां रसा । वेदा हिं रसा । -छान्दोग्य २५४ ड स एतां त्रयीं विद्यामम्यतपत् तस्यास्तप्यमानाया रसानु -छान्दोग्य ४1१७४ व स एप । -तत्त०उप० २१२ छ रस सार चिदानन्द-प्रकाद ॥ पद
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