हमारा हिंदी साहित्य और भाषा परिवार | Hamara Hindi Sahitya Aur Bhasha Pariwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० २१ शेर रेदे १७ लिए हे न कि आदर्वों का प्रचार करने के लिए। यह सिद्धान्त यथार्थवाद का ही समर्थन करता है । मादशंवाद--प्रत्येक रचना में किसी न किसी आदर्श या सिद्धान्त का समा- वेद आवश्यक रूप में स्वीकार करने वाला सिद्धान्त आद्शंवाद कहलाता है। इसी सिद्धान्त के अनुसार साहित्य का उद्देद्य केवल मनोरजन नही प्रत्युत समाज का निर्माण भी है । और यह तो निद्चित है कि समाज का निर्माण सदा सुसस्कारो से ही होगा । हालावाद--कवि अलौकिक प्रेम के मद में छककर मतवाला हो जाता है और उसी दिव्य आसव का पान करते-करते अपने आपको भूल बठता है । ऐसी स्थिति का वर्णन करनेवाली कविताएं हालावादी कहलाती हे । प्रसिद्ध फ़ारसी कवि उमर-खैय्याम की रुबाइयो के अनुवाद से हिंदी मे हालावाद का प्रारम्भ हुआ है। साकी प्रेमी साथी मय सद्य-मघु मयखाना मवुशाला जाम पात्र आदि पदार्थ भी इसमें आध्यात्मिक रूप में प्रस्तुत होते हे । कवि गहरी निराशा की अनुभूति के परचात्‌ ही इस कल्पित मादकता के लोक में पहुचना चाहता है । बच्चन आदि कुछ-एक हिन्दी-कवि कुछ समय तक इस वाद मे प्रभावित रहे थे। अब इसका प्रभाव समाप्त-सा हो गया है । स्वच्छत्दतावाद--साहित्य की किसी एक बहती हुई घारा के बहाव में न बहुकर पुराने सभी प्रकार के रूढिबन्घनों को तोड़ देने के सिद्धान्त को स्वच्छन्दतावाद रोमान्टिसिज्म कहते है। ऐसे कब्रि को परिव्तेनवादी या स्त्रच्छन्दतावादी रोमान्टिक कहा जाता हूँ । प्राय प्रत्येक काल में कोई त कोई रोमान्टिक कवि हुआ है। आधुनिक-काल में निराला को प्रतिनिधि-स्वच्छन्दतावादी-कवि माना जाता है । कवि ओर काव्य--हर्ष दोक उत्साह आदि मनोवेगो को तरगित करने वाली रचनाए काव्य कहलाती है। १ दृष्य और २. श्रव्य ये काव्य के दो मुख्य भेद है। नाटक एकाकी नाटक गीति-नाट्य आदि दुश्य-काव्य के अन्तर्गत गिने जाते हैं । गद्य उपन्यास कहानी आदि और पद्च प्रबन्च- काव्य मुक्तक-काव्य और गीति-काव्य आदि श्रव्य-काव्य है । इन सभी का रचयिता कवि कहलाता है । साहित्य और साहित्य-शास्त्--किसी भाषा में लिखे हुए सभी विषयों के सम्पूर्ण ग्रत्थो को या केवल काव्य को साहित्य कहते हू । साहित्य की आलो-




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