श्री पंच प्रतिक्रमण सूत्र | Shri Panch Pratikraman Sutra sachitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ ३ चाशित्र सामाधिक। सापुर्पों के सर्वचारित्र सामाधिक होता है घौर गृहन्प श्रावक देश दारित्र होता है । एह सुदूर्ण ्रयांत्‌ ८ पिनट बाल देश सामाधिक वा होता है। इसमे कम समय वा सामान पिफ नहीं होता । सामाधिक करना प्रयम झावश्यक क्रिया है 1 २ चतुविंगतिस्तप-- कपभादि चौवीस तीयंकर भगवान वी स्तुति वरना दुर्विंशति रतय नामक दूसरा प्नायर्यक है। है चरंदनकााणा कं मन यचन भौर शरीर हे के प्रति बढुमान प्रवट हो उस किया वो दादरावत वरदन परना वन्दनक धायश्यक है । बत्तीस दोप रहित बर्दन गरना थाहिये। ४ प्रतिक्रमण-- _.. प्रमादवश-शुभ योग से पतन होता है भर भ्रशूम योग मैं प्रयृत्ति हो जाती हू । पुनः शुभ योग में धाने को क्रिया पतिकमण है । तथा अयुभ थोगों बा परित्याग गर सुभयोगों में प्रदूत्ति होना भी प्रतिकमणा है। प्रतिक्रमण का सामान्य भर्थ पीछे सोटना है । पाप बार्मोदोपों से पोछे हटना प्रतिक्रमण है । महाबत्त या देशब्रतथारी को श्रपने ब्रतों को पालन पुर्ण सावधानी मे बरने पर भी छथपस्य व्यपित से प्रमादवश भूल हो मवती है । उन्हीं गलतियों का मिथ्या दुष्दत देवर थुद्ध होने थी किया प्रततिकपणा है १ देवशिक २ राधिक दे पाक्षिक ४ चातुर्मासिक सर ५ सांवि- ह्सरिक । ऐसे प्रतिक्रमण के ४ सेद हूँ सो शास्त्र सम्मत हूँ। वाल भेद से होन प्रगार का प्रतिक्रमण्ण भी शास्यवधथित है --१ झतीत के दोपों थी श्रालोचना करना 1 २ संवरभाव में रहनर वत्त मान में लगने थाले




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