ग्राम्य शिक्षा का इतिहास | Gramya Shiksha Ka Itihas

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Gramya Shiksha Ka Itihas by श्रीनारायण चतुर्वेदी - Shreenarayan Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) ठीक वर्गीकरण करना बड़ा कठिन कार्य है। हाँ, यदि गाँव: ज़मींदार और वौहरे को एक वर्ग में रखें दिया जाय तों गाँव के शेष निवासी दूसरे वर्ग में रक्‍्खे जा सकते हैं । हिन्दुओं में तो चार जातियाँ हैं और यद्यपि इस्लाम जाति पाँति का क़ायल नहीं, फिर भी संयद को जुलाहे के अति अपनी उच्चता का इतना विचार तो स्वभावत: ( और विशेषतः जहाँ विवाद्दादि के सम्बन्ध की वात हो ) बना ही रहता है जितना कि ज्नाह्मण में अपनी जाति से नीचे की जाति के प्रति रहता है । हिन्दुओं. में ब्राह्मण, क्षत्रिय ( ठाऊुर ); वैश्य-चनिया और शूद्र चार मुख्य जातियाँ हैं। इनके अलावा एक पाँचवीं जाति श्और थी है जो झछूत कहलाती है। सबसे गया वीता काम करके ये अपनी जीविका चलाते हैं । प्रथम तोन जातियाँ उच्च जाति के नाम से पुकारी जाती हैं और बाक़ो “नीच क़ौम” सानी जाती हैं । इनमें न्नाह्मण, कांयस्थ 'और वैश्य साहित्य-सेवी जातियां हैं क्योंकि इनकी झाजीचिका बिना कुछ पढ़े-लिखे चल नहीं सकती | जमींदार वगे तो प्राय: क्षत्रिय हैं । 'बीर भोग्या चसुन्घरा' की पुरानी संस्क्व लोकोक्ति के अनुसार प्राचीन काल में तलवार के बल पर ही भूमि का अधिकार भोगा जाता था । अतः शख- चिन्ता में पड़ कर शाख्र-चिन्ता को ओर से चत्रिय-लोग किनारा- कशी कर गये । अब मुसलमानों में सेयद, शेख और सुग़ल ऊँची क्रीम के माने जाते हैं । इनमें से पहले दो चर्ग के लोग साहित्य- सेंची हैं। लेकिन साहित्य-सेवी लोगों की संख्या याँबों में घहुत




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