काव्य प्रकास | Kavya Prakasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42.29 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)3 नमः शिवाय । काब्यपकाश । श्रीहरिशड्रशम्मप्रणीतनागेश्वरीटीकोपेतः । अन्थारम्भे विज्ञाविघाताय समुचितेष्रदवतां अन्थकृत्परासशति- यद्वच्चन्द्रकर स्पा संकुच द्विरिजानन । नयने संक्षिपध्छम्सुः सस्मितः पातु सबंदा ॥ १ ॥ काव्यप्रकादरसिंकेः कतिभिः की हैः खंग्रथ्यमानविवूतीवहुघा विलोक्य | तत्त्वाधरत्ननिचय लत एव लब्धा नागइवरीकर णतत्पर एष दीन ॥ २ ठाढ़ीपुरीमधिवसन्हदारिशड्रों यः श्रीमद्रमेंद्वरनरा घिपलब्घलेखः । तेनयमदूखु्तागिरां कविकुज्राणां छुत्या कता कछतिरियात्समतां लघुत्वात ॥ ३ ॥ निज्ककारिकां व्याख्यातुकामों मदहामहो पाध्याय-मम्मटों निज्म- डूलस्यावतरणिकामाह--पग्रन्थति । अन्थों नाम सम्बन्धप्रयोज़नज्ञाना- दितशुश्चचाजन्यश्रुतिविषयदाब्द्सन्द भे । खम्बन्धस्ध वाच्यवाचक- स्वरूप । आारस्मदाब्द्स्य झटिति घिघ्नविघातसामथ्य प्रतिपत्तिरूप - प्रयोजनवत्या लक्षणया तत्प्राकालोध्थः । विश्नविघातायेति । विद्यों नाम प्रतिबस्घकाइए विदेषः तस्य विघातः विशेषध्वसस्तस्ते ताद- थ्य नतुर्थी । समुचिताम प्रतिपाद्यविचयानुरुूपामू इश्दवतामू श्र- न्थकुन्मनो 5सुकूलकविभारतीरूपाम्ू अम्थकृत मस्मटोपाध्यायः प- रामदति स्तोति । तथा च ग्रन्थारम्भप्राक्ालिक बिज्नावघातफलक समुचिते छदेव ताकमे कग्नन्थकुद मिन्न-मस्मटकतूकवतेंमानकाल्टिक परा मस को व्यापार इति खन्दमांये। ॥
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