सच्चिदानन्द वात्स्यायन युगसन्धियों पर | Sacchidanand Vatsyayan Yugsandhiyon Par
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुख्य-मन्त्री उसे बूल कर बलेंगे तो वह अपने को घन्य मानेगा । क
मुख्य-्मन्त्री ने कहा, नहीं, नहीं, मेरा यह मतलव नहीं था । मैं तो सिर्फ
तुम्हारे टेस्ट को तारीफ कर रहा था
लेकिन दुसरे दिन जब डायरेक्टर साहव वह कालीन ले कर सुश्य-मन्त्री के
बगले पर पहुंच ही गये तब उन्होंने बापी अनिच्छा दिखाते हुए अत में चह
में स्दीकार बुर ली ।
कालीन वहीं पर बिछा दिया गया जहाँ से वह पहले हुदाया गया था 1
नहाती इतनी ही है । मुख्य-मन्त्री नम्दर दो ने वहानी सुना बर सुख से
पूछा, अब बाप बताइये कि इस में कहाँ करप्शन हुआ और महाँ गलती
हुई * यह दूसरी चात है कि बह ऐसा बरते मा ऐसा ने करते । लेकिन उसका
जदाब तो सीधा है--जो आदमी योग्य हीता है उस वा काम करने का अपना
ढुग होता है, अपना स्टाइल होता है, मैं तो बहूंगा वि अपना जीनियस होता
है ।” थोडा रुक कर उन्होंने कहा, “अब आप बताइये, उस स्वूल मास्टर को
वह नौकरी मिल गयी जिस का वह हब दार था, शायरेव्टर साहब खुघ हो
गये कि उन्होंने सुस्य मनदी जी को खुद वर दिया, मुख्य-मन्त्री खुश हैं कि
उन्होंने रुकूल मास्टर ने साथ इन्साफ वरा दिया । रही कालीन की बात---
बहू सरकारी माल जरूर था, लेकिन वह ती जहाँ वा था यही वा वहीं है /”
सोचते हुए मैंने सन-ही मन स्वीवार वियए दि इस सारी चार्पवाही मे
रही कुछ दोष हो सबता हैं तो यही वि सरकारी माल दा एव लदद--यानी
वह दालीन--थोडे दिन के लिए एवं मेरसरकारी धाम वे लिए इस्तेमाल
किया गया । लेविन वया सचमुच चहू सुरसरकारी वाम था, या कि मुख्य-
मन्दी नम्वर दो ठीक ही बहने हूँ थि यह शासक की जीनियस की भौर उस
की सास स्टाइल मी बात है ? अगर कार्रदाई की इस स्टाइस में वहीं सामन्ती
युग दी कोई छाया दीयती भी है--और विक्रमादित्य या हारू-उल-रसीद से
से बर महाराजा रजीतसिंद के जमाने तक लगातार दायद राजा उरें प्रधासव
दे वाम करने वा ढंग ऐसा रहा कि वह इग्साफ, वानून वी परिधि से दाहुर
जाता रहा--तो इशे सामनती युग वी छाया मान बर भी दोप दौसे वहा जाय
का पूरे समाज की मानसिकता पर अभी तक बसी हो सामन्ती छाया धनी
द् गे
हम सोवतन्त वी यात तो बहुत करते हैं । उस का बहुत-सा ताम-भाम
भी हमने अपना लिया है, तेविन लोश्तर्त्र सब से पहले एक मानसिकता है ४
रशशतमत दाँचा और बार्य-पद्धतियों उस मानसिकता में से निवसती हैं
दासन . एव जादुई वालीन / १७
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