मादक प्याला | Madak Pyala

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Madak Pyala by बलदेवप्रसाद मिश्र - Baladevprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श््‌ विषम धरा पर तुमने सेजे निबंल मलुजो के समुदाय । तथा पुण्य के साथ टुस्हीं ने रचा पाप को भी तो हाय ॥ हुए पतित जब वे तो उनको करके क्षमा प्रशाति निधान । हरलो वह झनुताप कारिणी सकल कालिमा , हे शगवान ! ( पाठक देखेंगे कि यह प्रार्थना भी कितनी गोरवपूण है। जब ईश्वर ने ही पतन कराया, तो च्तमा करके कालिमा हरना थी उसे लाजिम है। ) ठीक यही हाल उनके अन्य दार्शनिक सिद्धांतों का थी है। दे यह मानते हैं कि विधि-विधान अटल है श्रौर इसलिये हमें झपनी पनी स्थितियों पर सबरूपेण संतोष करना चाहिए, परंतु वे झपनी इच्छा भी प्रकट करते जाते हैं कि हम लोग यदि किसी प्रकार इस विधि-विधान से कुछ परिवत्तन कर सकते, तो कितना उत्तर होता । लिखती ही जाती हे रैंगली बढ़ती ही जाती विराम । लाखों यह्लों से थी उसकी हो सकदी कु रोक-न-थास ॥ करो चाटुकारी चाहे तुम चाहे झशुनदी दो डाल 1 कितु न थोड़ा भी मिट सकता निष्ठुर विधि का लेख कराल ॥ न्द श्द अर शर्ट भ्द जिसके नीचे उपज-उपज कर हम सब बनते 'घूल चिदान । उस ही उलटे पान-पात्र सम नसनको मन से मान महान ॥ क्यों तुम उससे मॉर्ग रहे हो रक्षा की सिक्षा झविरम । घूम रहा बह थी तो चेवस हम तुम ही सा श्माठोयाम ॥




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