जलते और उबलते प्रश्न | Jalate Aur Uablate Prashn
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्यादोचा- धारणा और पद्धति 1:
चाराणाओं को या तो छोड दंते हैं बयया उनमें सशोधन वर रते हैं । फिर भी
घारणा और पद्धति या सम्वध घनिप्ठ होता है और यर्दि पिसी मे बे द्रगत-
धारणा विधास को परम लिया जाए तो उसने द्वारा प्रयुक्त पद्धति मा
पुूद्धतियों दे प्रयोम वे स्वस्प या वे द्रगतधारणा व मिवट पाया जायगा । 7
साहित्यमप्टि की भाँति साहित्यादोचन भी अत प्टिपरपअधिय'
होता है । एवं कवि अपन निप्वर्षों, सवेदनो, भावों और बत्पनाओों का दिसी
डतति क॑ रुप में कैसे प्रयोग वरता है, यह ने प्वि प्रयोग द्वारा प्रमाणित मर
समता है, न भालोचव, वयोषि' साहित्य और बला द्रप्टा (भोत्ता) और
वास्तविकता वे 'दृद्ग' और 'सयहि' वा परिणाम हैं । पहीं. साहित्यनकता
मे जीवन वी अनुरति हॉती है, बही पुनसू जन, वही परिवतन, बहीं समपण,
यहीं सुधार, पढ़ी साथ ऐद्रिय सवेदनों था चिश्रण । कितु इन सभी भियाओ
में दो तस्व सामा य हैं, व्यक्ति और वारतविषता । तोसरा तत्व है इन दोनो वा
आपसी सम्बंध । इस सम्बन्ध या. सम्पक था स्वरूप जसा होगा, पला-पद्धति
भी उसमे अवर्य प्रभावित होगी । इसी प्रकार साहित्यालीचन मे भी बास्ते
कि वे प्रति भनुसधानवर्ता की घारणा मे अनुसार उसकी पद्धति प्रभावित
गी 1
हर व्यक्ति की वास्वविवता वे प्रति प्रतिक्रिया, साहित्य में धत्तमुसी
हावर ही व्यक्ति होती है, अत जय तक बिसी ऐसे यत्र का आविष्कार नहीं
हो जाता वि सजन प्रश्रिया प्रारम्भ होत हो धरीर से सटे यत्र द्वारा अवयव
मम्थान था सनायुमण्डल की पुण प्रतिष्ति हमार सम्मु उपस्थित हो सके,
तब तक “अतह रिटिवादी पद्धति” * वा प्रयोग अवध्य होगा । यदि इस विधि
द्वारा अजय व्यति को. चिंतन प्रशिया दिखाई नहीं जा सर्वत्ती तो प्रत्येक की
अतह प्ठि अपने अपने गतामुगतिक सस्वार, परिस्थितियों आदि के सारण मिस
होयी । अतएव सहमतियों के साथ, असहमतिया का विवास थी साध ही-साथ
होगा और यह प्रश्िया या चलती रहेगी-सूृजन प्रश्रिया-सहेमत्ति ने मसहमति--
सहमनिनअमहमति-सपाधन-सहमति--असहमत्ति 1
साहिस्यालौचन मे डिंतीय पद्धति “'अबयव बिद्लेपणवादी” पद्धति है।
यह पद्धति भी बरी पुरानो है। उदाहरणत भरत मुनि ने “रस की मिप्पत्ति
में विभाव, अवुभाव, सचारी, स्थायी वी जरग अलग य्यायरया वी है और इनके
विशिष्ट समीवरण से रस की निप्पस्ति सिद्ध थी हैं । *आज भी साहित्य में
।
१. उघि०्ञूर्लएणा ही
२ इस घारणा मे भाव और वस्तविव ता दी अभिज्ा (ए०४्ााधिणा
मं सम्बंध पर विवुल व नहीं दिया गया | वारतविवता दे प्रति एक
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