नेहरु विश्व शांति की खोज में | Nehru Vishwa Shanti Ki Khoj Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ २५ ) कमीशन का प्रइन--“'क्या तुरन्त ?'' डायर--“हाँ, तुरन्त । मेने इस पर पहले ही विचार कर लिया था झौर अपना कतंव्य सोचनें में मुझे तीस सैकिण्ड से अधिक न लगा ।” ल्‍ कमीशन के सामने डायर ने यह भी स्वीकार किया कि--“सम्भव है, सभा मे उपस्थित बहुतेरे मनुष्यों ने मेरी सनाही की आ्राज्ञा न सुनी हो ।'' कमीशन के श्रघ्यक्ष लार्ड हटर ने पुछा--“यह जानकर भी तुमने भीड़ को पहले तितर वितर होने के लिये सावधघीन नही किया *” डायर--“'नहीं, उस समय मेने यह नहीं सोचा । मेने यही समभा, कि मेरी श्राज्ञा नही मानी गयी । सभा करके माशंत्ला की उपेक्षा की गई । इसीलिये मेने गोलियाँ चलाना जरूरी समभा 1” कई प्रदनोत्तर के वाद उस रक्त पिपासु जेनरल डायर ने कहा कि--“मेंने दस मिनट तक उस भीड पर धृ श्राधार गोलियाँ चलायी । मेने भीड़ को. हटाने का उद्योग नही किया । में बिना गोलियां चलाये भी भीड को हटा सकता था; पर इससे लोग मेरी हेसी उड़ाते । कुल मिलाकर १६५० गोलियाँ दागी गयी थी । गोली बरसाना तभी बन्द किया गया, जब वे खत्म हो गयी । सभा में भीड़ वहुत ही घनी थी, जहाँ गोलियाँ चलाई गई ।” जेनरल डायर ने यह भी स्वीकार किया कि घायलों को उठाने और उनकी मदद करने का कोई प्रवन्घ नहीं किया गया । उसने कहा--“'उस समय उन घायलों की मदद करना मेरा कतंव्य नहीं था ।”” लाला गिरघारीलाल का मकान जलियावाला वाग के निकट ही था, शोर उनके मकान से बाग दिखाई भी देता था । डायर की गोलियों का दृश्य वह अपने घर से देख रहे थे, श्रौर उनका वयान है कि--“मेने उस जगह सेकडों को मरते देखा । गोलियाँ वाग के दरवाजों की श्रोर ही चलती थी, जिघर से मनुप्य भागने की चे्टा कर रहे थे मेने घूम-घूम कर वह स्थान देखा प्रोर जगह-जगह लायों के ढेर दिखायी दिये । कितनों का माथा कटा था, कितनों की झ्ाँखों में गोली लगी थी, कितनों के हाथ, पर, नाक-कान और भेजे चूर-चूर हो गये थे । में समभकता हूं, कि एक हजार से अ्रघिक मनुष्यों की लाशो के ढेर वहाँ पढ़ें थे 1” 2 नि




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