सिंहल - विजय | Sinhal Vijay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
73 MB
कुल पष्ठ :
233
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुन्नय । ] प्रथम अंक । ्
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: और तरफ देख सकते हैं ? केवल इन दोनों . आँखोंकी तरफ देखो
| फिर तुम्हें ओर कुछ देखनेकी आवश्यकता ही न. रह जायगी । जल्दी
यह समझना कठिन है कि ये दोनों अँखें कया हें-मीन हैं, या खंजन
हैं, या हरिनी हैं । और फिर यह नाक । ऐसी नाक कहीं देखी है ?
और हँसी ( हँसकर )--आह में मर गई !
सुरमा--वाह, रूपका इतना गुमान ! थ
कीठा--यह तो हुआ रूपका गुमान, और यदि गुणका गुमान करूँ
तो तुम्हें माठूम हो जाय कि बात क्या है !
सुरंमा--जरा ग़णके ग़ुमानका भी नमूना देखें ।
ठीठा--हाँ हाँ देखो । पहले तो विद्या--में अनायास ही तुम्हें सब
: कुछ सिखा सकती हूँ ।
सुरमा--हाँ विद्या है, यह तों में मानती हूँ ।
लीला--मानना ही पढ़ेंगा । आर फिर इसके बाद गाना-( स्वर
. ठीक करके गाती है । )
ठुमरी ।
मेरी प्यारी वीणे, ऐ प्यारे मम गान ।
' कोमल स्वरसे व्यथा निकल कर, ज््याकुल करती पाण ॥ मेरी० ॥
'णएकी कथा सभी तारोंमें, एकी दुख सो तान ।
मिला निरादाम कायरपन, औओ हताशइा-अपसान ॥ मेरी० ॥
जाग सके तो जग जा वीणे; और उच्च कर तान ।
प्राण कँपाती में गाऊँंगी-नये गीत, सच मान ॥ मेरी० ॥
हरे सुरखे गला मिलाकर; करन्दन करूँ महान ।
' जेत्रोंके जढ मिल कर होवे, मन-दुखका अवसान ॥ मेरी० ॥
जाग सके तो जग कर बज उठ, ऊँचे राब्द्-विधान ।
“नूतन स्वर गाकर, करना है मेरे साथ मिलान ॥ मेरी० ॥
है
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