मनुष्य - विकास | Manushya - Vikas

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Manushya - Vikas  by श्री रामेश्वर - Sri Rameshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुष्य-विकास का ध्यान काल्पनिक भावों में विशेष बैटा रहा; जिससे ब्याध्यात्मिक विचारों की झोर उनका आकर्षित होना स्वाभाविक हुआ । इसके विपरीत आधुनिक वैज्ञानिकों ५ ७ च्ख हू. की चेष्टा भौतिक पदार्थ-संबंधी खोज की आओर अधिक रही है; जिससे विकासवाद का उदय हुआ । सृष्टिननिमाणु के विषय में प्राचीनता-वादी व्यक्तियों का यह विश्वास 'है कि इस विश्व का अस्तित्व महान्‌ शक्ति इंश्वर की इच्छा पर निर्भर है । उनकी घारणा थी कि प्राणियों का जन्म-मरण ईश्वर की इच्छा के अनुसार होता रहता हैं । उनके मतानुसार इस विश्व का निर्माण किसी विशेष #*५ कक 4. नियम के आधार पर नहीं हुआ । कितनों का यह विश्वास है कि सष्टि आदि से ऐसी ही है; आर सदा ऐसी ही रहेंगी | अर्थात्‌ इसका न आारिं है और न अन्त | इसी तरह कुछ लोग इस बात में विश्वास रखते आये हैं कि इंश्वर ने विशेष अवसरों पर विभिन्न पदार्था की रचना कर चार- ९ ४ हा #७. ड् ₹+ 3 छ,: दिनों में साष्र बना डाला है । लेकिन विकासवाद के सिद्धान्त के अनुसार ये सभी चल प्रकार की घारणाएँ निमूल प्रतीत होती हैं । यह संभव नहीं कि इस बृहत्ससार का किसी नियम के झनुसार निर्माण हुआ हो । किसी की इच्छामात्र से एक अनन्त विश्व का |




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