मनुष्य - विकास | Manushya - Vikas
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य-विकास
का ध्यान काल्पनिक भावों में विशेष बैटा रहा; जिससे
ब्याध्यात्मिक विचारों की झोर उनका आकर्षित होना
स्वाभाविक हुआ । इसके विपरीत आधुनिक वैज्ञानिकों
५ ७ च्ख हू.
की चेष्टा भौतिक पदार्थ-संबंधी खोज की आओर अधिक
रही है; जिससे विकासवाद का उदय हुआ । सृष्टिननिमाणु
के विषय में प्राचीनता-वादी व्यक्तियों का यह विश्वास
'है कि इस विश्व का अस्तित्व महान् शक्ति इंश्वर की
इच्छा पर निर्भर है । उनकी घारणा थी कि प्राणियों का
जन्म-मरण ईश्वर की इच्छा के अनुसार होता रहता हैं ।
उनके मतानुसार इस विश्व का निर्माण किसी विशेष
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नियम के आधार पर नहीं हुआ । कितनों का यह विश्वास
है कि सष्टि आदि से ऐसी ही है; आर सदा ऐसी ही रहेंगी |
अर्थात् इसका न आारिं है और न अन्त | इसी तरह कुछ
लोग इस बात में विश्वास रखते आये हैं कि इंश्वर ने
विशेष अवसरों पर विभिन्न पदार्था की रचना कर चार-
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छ,: दिनों में साष्र बना डाला है ।
लेकिन विकासवाद के सिद्धान्त के अनुसार ये सभी
चल
प्रकार की घारणाएँ निमूल प्रतीत होती हैं । यह संभव
नहीं कि इस बृहत्ससार का किसी नियम के झनुसार निर्माण
हुआ हो । किसी की इच्छामात्र से एक अनन्त विश्व का
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