समाज और साहित्य भाग एक | Samaj Aur Sahitya Part 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८1]. समाज श्रौर साहित्य डालनेवाले रन्तिदेव बहुत कम दिखाई देते हैं । धन से धन कमानेवालों की कमी समाज में नहीं रहती । जिसके पास एक लाख रुपया है, उससे वह दो लाख श्रासानी से कर लेता है, पर बिना घन के घन कमानेवाला संयमी पुरुष कोई बिरला ही सिलता है। समाज में उत्थानत्पतन का संघर्ष सदेव मचा रहता है | इंस संघर्ष-द्वारा ही समाज बल प्राप्त करता है | समाज एक सिकता-राशि है। बड़े-बड़े शझ्रनुमवी उस पर चलकर शपने-अपने पद-चिन्ह छोड़ गये हैं । सैकड़ों वर्ष पहले याज्वल्क्य ने धोबियों की एक शरारत का श्नभव करके उनके लिये सरकारी दंड नियत किया था ।-- वसानस्त्रीन्पणान्‌ द्ण्ड्यो नेजकस्तु परांशुकमू “घोनी पराया वस्त्र पहने तो तीन पणु दण्ड लेना |? घोषियों की यदद शरारत झाज भी चलती है| चन्द्रगुप्त के मंत्री चाणक्य ने नाइयों के विष्रय में अनभव किया था ।-- . नराणां नापितो धूतं:” मनुष्यों में नाई घूत होता है ।' ताज भी नाई अपनी काक-वृत्ति के लिये बदनाम है । समाज ने साघारणु-सी-साघारण बात की छान-बीन करके तब उसे स्वीकार किया है । इसीलिये सब विषयों में समाज का _ निणुय ही मान्य एवं प्रामाणिक समझा जाता है श्र हम उसी; _ के प्रशस्त माग॑ पर गमन करते हैं ! समाज का उद्दइ्य अपने . अन्तगंत रहदनेवालें प्रत्येक प्राणी के जीवन के सकल, 0




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