हमारी मांग | Hamari Maang

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जे. सी. कुमारप्पा - J. C. Kumarappa

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श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी - Shree Chakravarti Rajgopalachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० हमारी मांग यदि महाराजागणा मुभे श्राज्ञा देगे तो में यह बतलाना चाहता हूं कि भ्रारम्भ में ही महासभा ने श्रापकी भी सेवा की है । में इस समिति को याद दिलाता हूं कि वह व्यक्ति भारत का वृद्ध पितामह ही था, जिसने कइमीर श्रौर मैसूर के प्रदन को हाय मे लेकर सफलता को पहुं- चाया था श्रौर में अत्यन्त नम्रतापूबंक कहना चाहता हुं कि ये दोनों बड़े घराने श्री दादाभाई नौरोजी के प्रयत्नों के लिए कम ऋणाी नही हैं । अबतक भी उनके घरेलू श्रौर श्रान्तरिक मामलों मे हस्तक्षप न करके महासभा उनकी सेवा का प्रयत्न करती रही है । मे झ्राशा करता हूँ कि इस सक्षिस परिचय से, जिसका दिया जाना मने ग्रावइ्पक समभा, समिति श्रौर जो महासभा के दावे में दिलचस्पी रखते हैं वे जान सकेंगे कि उसने जो दावा किया है, वह उसके उपयुक्त है। म जानता हूं कि कभी-कभी वह शभ्रपने इस दावे को कायम रखने मे अ्रसफन भी हुई है; किन्तु में यह कहने का साहस करता हूँ कि यदि श्राप महासभा का इतिहास देखेंगे तो झ्रापको मालूम होगा कि अ्रसफल होने की श्रपेक्षा वह सफल ही श्रधिक हुई है भ्रौर प्रगति के साथ सफल हुई है । सबसे श्रधिक, महासभा मूल रूप मे, श्रपने देश के एक कोने से दूसरे कोने तक ७,००,००० गावों में बिखरे हुए करोड़ों मूक, भ्रद्ध नग्न आर भुखे प्राणियों की प्रतिनिधि है; यह बात गौण है कि ये लोग ब्रिटिश भारत के नाम से पुकारे जानेवाले प्रदेश के हैं अथवा भारतीय भारत श्रर्थात्‌ देशी ज्यों के । इसलिए महासभा के मत से, प्रत्येक हित जो रक्षा के योग्य है, इन लाखों मूक प्राणियों के हित का साधक होना चाहिए । श्राप समध-समय पर विभिन्न हितों में प्रत्यक्ष विरोध देखते है; परन्तु, यदि वस्टुत: कोई वास्तविक विरोध हो तो, मे महासभा की शोर से बिना किसी संकोच के यह बता देना चाहता हूँ कि इन लाखों मूक प्राणियों के हित के लिए महासभा प्रत्येक हित का बलिदान कर देगी; क्योंकि वह श्रावद्यक रूप से किसानों की संस्था है श्रौर वह शझ्रधिकाधिक उनको अनती जा रही है । श्रापको, श्रौर कदाचित्‌ इस समिति के भारतीय




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