आधान | Aadhan

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Aadhan by शांति प्रिय द्विवेदी - Shanti Priya Dwiwedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य में भक्ति-भावना १७ अपने गाहईस्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक रूप में सगुण-काव्य रागात्मक है। व्यक्ति के साथ समाज की तरह जीव के साथ उसका जीवित शरीर ही राग का कारण है। राग से ही नाम- रूप-रस-गन्व का प्रादुर्भाव श्रौर श्रतुभव होता है। जहाँ राग है, यही भावना, कल्पना श्रौर कला है। एक बव्द में राग ही काव्य का मूलतत्त्व है। भक्ति की सार्थकता यह है कि वह राग को परिप्कृत श्रथवा सुसस्कृत कर देती है, उसे विद्वेप नहीं वनने देती । सगुण-काव्य तो श्रनुरागी है ही, किन्तु क्या निर्गुण-काव्य सर्वथा राग-नून्य है * ऐसा तो नहीं जान पडता । निर्गुण-काव्य के झस्य- तम श्रतिनिवि कवीरदास को भी अपनी अ्रतीन्द्रिय ब्ननुभूतियो का वोघ कराने के लिए रागात्मक रूपक का श्राश्रय लेना पड़ा है, यथा-- आई गवतवाँ की सारी, उमिरि श्रवहीं मोरि बारी साज समाज पिया ले आये और कहेँरिया चारी वम्हना चेदरदी झंचरा पकरि कै जोरत संठिया हमारी सखी त्तद पारत गारी । ऐसे ही श्रन्यान्य रायात्मक रूपको सें कवीर भक्ति को भावा- त्मक श्रयवा काव्यात्मक वना संके हैं। जो सम्बन्ध वे झात्मा श्रौर परमात्मा में स्यापित करते हैं वहीं सम्बन्व संसार. में स्थापित कर सगुण कवि ईश्वर को गाहंस्थिक श्र सामाजिक रूप दे देते है । गोस्वामी तुलसीदास जी के दाब्दों में-- व्यापक ब्रह्म निरब्जन निर्गून विगत विनोद । सो. झज प्रेम-भगति-वस कौशल्या के गोद ॥




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