मानव बुद्धि सम्बन्धी विवेचन | Manav Buddhi Sambandi Vivchan

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Manav Buddhi Sambandi Vivchan by कृष्ण सक्सेना - Krishn Saxenaडेविड ह्यम - Devid Hum

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दशेंत के विविध प्रकार दे की एक क्रिया अथवा नियम अन्य किया एवं नियम पर अवलम्वित हो जिससे कि एक और सामान्य तथा व्यापक सिद्धान्त का निगमन किया जा सके । सम्भवत इस दिशा मे सावघान प्रयास करने के पूर्व यह जानना कठिन हो सकता है कि इस दिया मे किया हुआ अन्व पण हमे किस कोटि तक पहुँचाने में समये होगा । परन्तु यह निषिचत है कि इस दिशा मे प्रतिदिन ऐसे छोग भी प्रयास प्रस्तुत करते ह जो प्राय अत्यन्त असावधान विचारक हैं। अतएव इससे अधिक उचित और कुछ नहीं हो सकता कि हम पूर्ण अवधान एव ध्यान से इस सत्वान्वेपण में जुट जायें--कारण, यदि यह विषय सानव वुद्धिगम्य है तो अवदय ही यह सुख की वात होगी कि हम उस तत्व को पा जायें, और यदि नही, तो हम इस भुधा प्रयास से सदा के लिए चघिदा माँग छू । इस अस्तिस निर्णय पर हमे सहसा नही पहुँचना चाहिए क्योकि यह सर्वथा अवाछनीय है । कारण, इस निणेंय पर पहुंचना दर्शन की उपादेयता एव शोभा को कितना घटा देगा । नीतिज्ञो ने सावव नित्दा अथवा स्तुति को प्रेरित करने वाली क्रियाओ के समूह एवं विभेदो के सम्भन्धों मे विचार करते हुए सदा ही ऐसे किसी एक सामान्य सिद्धात्त को खोज करने का यत्न किया है जिन पर कि इन विभिन्‍न भाव का उद्गम अवलम्बित हो सके और यद्यपि इस प्रयास मे वे कमी-कभी निशान से आगे वढ गये है, तथापि यह स्वी- कार ही करना होगा कि यह अपराध भी उनका क्षम्य है वयोकि अन्त से उनका उत्साह एक ऐसे सिद्धान्त को स्थिर कर ही सका जिसके अन्तर्गत समस्त गुण-दौष आ सकें । इसी प्रकार का प्रयास लाछोचको, ताफिकों एव कूटनीतिज्ञो का भी रहा है। उनके प्रयास स्व था निष्फल नहीं कहे जा सकते 1 यद्यपि यह निश्चित है कि अधिक समय अधिक विमर्श एव मनौयोग से, ये विद्याए भी अधिक पूर्णरूप प्राप्त कर लेती । मततएम ऐसी विचार परम्पराओ को सहसा त्याग देना, मानव जाति पर अपने अपरिष्कत नियमों एवं सिद्धान्तो को थोप देने वाली परम साहसी विघेया- रक कि विचार से भी कहीं अधिक विवेकह्दीन सिद्ध होगी । तो क्या ईगा यदि मानव अकृति से सम्बन्ध रखने वाली यह तकें प्रणाली सूक्म




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