धर्म के गीत | Dharm Ke Geet

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Dharm Ke Geet by मुनि धर्मेश - Muni Dharmesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रुत निश्चित के भी भेद चार किये भारी 11911 अवय्रह ईहा अवाय धारणा जानो-2 दोछाः छा छा यों सेद क्रमशः मानो । प्रभेद अनेकों होते हैं घेयकारी 1110 11 अक्षर सन्नी सम्यक्त्व गमिक व सादि-2 सपर्य वसित और अंग-सात इतरादिं। श्रुतज्ञान के चौदह भेद प्रभेद हैं भारी 11111 कर ज्ञानावरणीय का नाश ज्ञान 'विकसाऊं-2 बन सिद्ध आप सम ज्योत्त में ज्योत समाऊें। मुनि धर्मेश ' की अर्ज 'करो स्वीकारी 1112 11 10. सुविधि जिन स्तुति तर्ज : जब तुम्हीं चले यरदेश - प्रभो सुविधिनाथ जिन राज अर्ज मेरी आज नाथ स्वीकारो। रुक जावे कर्मबन्ध सारो । टिर।1 सुग्रीव नृप सुयशा सुत प्यारे आया अब तेरे में द्वारे। तजना चाहता सब कर्मबन्ध विकारों 11111 प्रदोण निहनव मत्सर वृत्ति रख ज्ञान मे अन्तराय खुद्धि। करे ज्ञान-दर्शना वरण बंध दुःखाकारो 112 11 1 17 धर्म के गीत अल रा




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