भागवत धर्म | Bhagvat Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जगदुके जीवोंकी स्थिति [११
प्चेस्द्ियमें ही, होते हूं। भ्रसंज्ञी पब्चेन्द्रिय केवल तियंड्चोंमें (पु पक्षियोंमें)
हो होते हैं। ये जीव बहुत हो कम सख्यामें पाये जाते हैं। कोई कोई तोता व
जलमें रहने वाले से प्राय: 5 संजञी है। मन उसे कहते हैं जिससे शिंक्षा,
उपदेश, हिताहितविवेक धारण दिया जा सके । मन न होनेसे श्रसंञी पट्चेर्द्ियों
में ऐसी योग्यता नहीं होती । सज्ञी पन््चे्द्रिय मनसहित जीवोंको कहते हैं।
चरकगतिके समस्त जीव, देवगदिके समरत जीव व भनुष्यगठिके रुमस्त जीव
संगी ही होते हैं। तियंश्वगतिके पड्चेन्द्रिय जीव हो संज्ञी । कते -
घोड़ा, हाथी, बकरा, चिड़िया, मुर्गा, सांप इत्यादि । तिर्यव्चगतिके पत्नवेन्द्रिय
जीवोंमें भ्रतंज्ञी जीव बहुत ही कम होते हूं ।
इस प्रकार ये जीव ७ प्रकारके हुए-- [१] सूक्ष्म एकेग्िय, [२] वावर-,
एजेन्द्रिय, हि | द्ीन्द्रिय, [४] सीन्द्रिय, [५] चतुरिन्द्रिय, [६] श्रसंज्ञी पज्वेन्द्रिय
, [७] संज्ञी पब्चेस्द्रिय । ये. सब दम हूं, इनमें जन्म मरण होता रहता है ।
जिसकी जैसी योग्यता होती है मरकर योग्यतानुसार भवोमें जन्म ले लेता है।
मनुष्य मर कर मनुष्य ही हो या पशु मर कर पशु ही हो इर्यादि ऐसा कोई
नियम नहीं है । कोई भी जोव.मर कर योग्यत्तानुसार किसी भी भवमें जन्म ले.
, लेता है। मनुष्य मर कर पशु हो सकता है, पु मर कर मनुष्य हो जाता है
. इत्यादि ! हां किन्हीं खास कारणोंके वजहसे कुछ ही नियम ऐसे है जरें कि देव
सरकर देव नहीं होगा, देव मरकर नारकी नहीं होगा, नारकी मर कर देव नहीं
, होगा, नारंकी , मरकर नारकी नहीं होगा, देव मरकर द्वीन्ट्रिय, श्रीन्द्िय,
चतुर्रिश्दरिय नहीं. होगा, ,रिनि व वायु मरकर मनुष्य नहीं होगां इत्यादि । हां
. तो उक्त ७ प्रकारके,जीवोंगे जब कोई. जन्म लेता है तो पूर्वभवके श्रन्त समयसे
. ही बहू जीव श्रपर्याप्त कहलाने लगता, है । ग्रर्थाद् जब तक नवीन शरीरकी
शरीररूप परिणमने, बढ़नेकी योग्यता नहीं, हो जाती है ,तब तक वह जीव
. भपर्यात्ति कहलाता है। इन शरप्याप्त जीवोंमें कुछ तो ऐसे हैं जो पर्याप्त न
/ हों पावेंगे, अपर्याप्त झवस्थामें ही म्रण कर जावेंगे तथा कुछ जीव ऐसे हैं जो
पर्याप्त नियमसे होंगे व. पर्याप्त .होनेसे पहिले मरण ही नहीं करें सकते । इन
दोनोंको भपर्याप्त कहते हैं । जब शरीर पररिणुमने की योग्यता. हो जांती, हैं. तब
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