वैशेषिक दर्शन | Vaisheshik Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ० १ आँ० शसुष्शि।. - श्डे' के आां्रेत॑ म्तीत हो, उस! को ' घर्म/ कहते हैं, और जो उस का आश्रय है, उस को धर्म कहते हैं । गर्थ थी हैं; क्योंकि वह पुष्प“ के 'ऑखितः प्रतीत होता है; पुष्प धर्मी' है,.. क्योंकि गन्घ उस के आश्रय है।-दौड़ना धर्म है;'क्योंकि-वह घोड़े के आश्रित प्रतीत दोता हैं, घोड़ा धर्मी है, क्योंकि बह 'दौड़े का आश्रय है। गन्ध में भी गन्घपना धर्म है, क्योंकि वह गर्थ में'प्रतीत हों ता है, गन्घ धर्षी है, क्योंकि. उस' में गन्थपन “प्रतीत होता हैं । सो गन्थ पुष्प का चर्म है, पर गन्धपन को घर्मी भी है। इसी' प्रकार |. संबन्र धर्मघर्मिभाव जानना 1 जनों अनेकों का सांशा धर्म हो; उस को साधम्य वा समान घ्म कहेत हैं, जेंसें'गन्ध पुष्प और इतर का, साधम्य-समान था हैं। और जो अपना विदेश धर्म हो, उस को वैधम्य वा विशेष धर्म वा विरुद्ध धर्म कहते है; लेते पंखड़ियां पु्ण का इतर से वैंधर्म्प है, और द्रवत्व इतर का पुष्प से वेधम्पे है । इस प्रकार साधम्य और वैघम्य द्वारा जब समस्त पदार्थों का' तस्वज्ञान हो जाता हैं, 'तब' पुरुष मुक्त दोता है। इसलिए इस शास्त्र में समस्त पदार्थों और उन' के धर्मों का निरुपण त्ञारम्भ करते हैं।। यहां छा पंदार्थो' को कथन भाव पदार्थों कें. आमेप्राय सें' : है, वस्तुतः अभाव भीं एक अछग पदाय कें रुप में मुनि को. आमिर हैं. अतएव 'कारणा भावाव कार्याबावः * ( 1 1-१ ); , और ” क्रियायुणव्यपंदेशिाधावादः' पागसंद” (९1९1९. इत्यादि सूंत्रीं की अंतर्द्गति नहीं । किन्दु अभाव का निरपण,




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