नोक झोंक | Nok Jhonk

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nok Jhonk by जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

Add Infomation AboutG. P. Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
३ कहते रहे कि मैरवीके चक्त शामकफल्यान न छेड़ो । चलो; मीतर चलो । धह भा गयी । . इस पर मोहनीका सब ख्याल भूछकर पतिंके प्रा्थोंफि लिए चिस्तित दो जाना स्त्रीके प्रेमप्रबण चित्त और पकाल्त यत्तिमक्तिकों प्रकट करता है। यह अंश बड़ा ही खुन्दर हुआ है। दाम्पत्य कलह, स्थमाधिक प्रेममर तामितुर और नेहभरी उड्छाउफा बड़ा खुन्दर नमूना है। बददवासरायका “सेरी मौत” कइते हुए इसी नातचीतेके घीखमें था ध्मकना ऐसा सम्रयापयुक्त हुआ है कि लेखकब््ी फदपनाकी प्रशंसा कश्नी दी पढ़ता है । फिर तो घहां सुशीलाफो जीती -जागती देख घद्दूधास- रायकी सक़्छ ठिकाने ऊगती है पर दारोशाम उसे देखकर शी अभ सपनी हठ ने छोड़ी तब भाव ओं को मारसे उसकी भकलकी मरम्मत की जोती है और सब चन्घनसे छुटकारा पा जाते हैं | इस पदसनमें हास्यरख भोतप्रोत भग हुआ है. और आादयर्त घटनाका कम इस ख यीसे बांधा गया है कि पाठक उसके प्रवादम बहने रूग जाता है । प्रस्परकी घातलीत कहीं कहीं पेसी खुबोसे छिसी गयी हैं! कि छेखकका फ़लंम सूप लेनेष्ी इच्छा दोती है । घदसन मनोरजकति साथ साथ शिक्षा अद भी है । इालदीम इसका अभिवय सी गोॉडेके धक्तीसीनि रात अक्टूबर मासमें किया था सौर उसकी ययेष्द: ' परशसा,' हुई, थी ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now