भड़ामसिंह शर्मा | Bhadamasingh Sharma

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhadamasingh Sharma by जी॰ पी॰ श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

Add Infomation AboutG. P. Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भड़ामसिंह राम “हाफ्जा गर वरल ख्वाही सुलह कुन बा खासो आम | वा मुसलमा अल्‍्छा अव्छा वा बरहमन राम राम ॥?”” बह शादी रात है ! दो झादमी यह सुनते दो चोंक पड़े और जिधघरसे यह आवाज़ आई थी, उघर ग़ौरसे देखने क्गे। एक झझादमीका ढांचा एक कोनेमें सिकुड़ा-सिकुड़ाया पुलिन्देकी सूरतमें कुछ गड़बढ़सा दिखाई पढ़ा। रोशनी इस कम्नाट्मेंटमें ठोक नहीं पढ़ती थी । एक तो यों दो अंघियाकी थी । उद्रपर आधी सूरत । मुंदकी जगद खाक्ी चाँद घुटी खोपड़ी नजर श्राती थी । इचलिये इनकी शकलकी इुक्षिया लिखना अभी जरा टेढ़ी वीर है। दोनों इघर देख ही रहे थे कि सामनेकी बंचपरस्रे तीन झादमों एकबारगी योक्ष उठे ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now