नाक में दम | Naak Me Dum

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Naak Me Dum by जी. पी. श्रीवास्तव - G. P. Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ पहला 5 ड টি 4० सकल मनांकाप्रना सिद्ध ह्यो जाती है । कोद सत्य भावसे उनका स्मरण भी तो करे । मुसीवत०--अगर ऐसा है, तो कहिये अपनी शादीफै लिये उनका फिर ध्यान कह १ १-२०३-४-संन्यासी--अर्यथ | इस अवस्थामें विवाह |] मुसीबत०-- क्यों क्या, हज है? तुम छोग तो णेसे चकराये कि जेसे में फांसीपर चढ़ने जाता हूं । १पसंन्यासी - दाताजी, इस अवस्थामें अथ अपनी मुक्तिके लिये ईशएथरका ध्यान फीजिये। इस छोकसे संबन्ध तोड़िये | अपना परकोक बनाइये । «4. ४ खंन्याली-- इस अवस्थाम विवाहकी चेदी५८ चढ़ना फाँसी घढ़नेसे भी कठिनतर है। क्योंकि इसकी फंसरी तो कुछ ही घड़ीमें छूटकारा दे देती है; परन्तु उसकी फौसरी शिरपर चिन्ताओंका दोप पहनाकर सर्वेच दम धोंदती रहती है। ओर--- “चिता चिन्ता समाध्ुक्ता बिन्दुमात्र विशेषत/। सओीयै दहते चिन्ता निर्जीवं दषते चिता ॥#? ३ संभ्यासी--हा भारतमाता { जं तेरे पश्र जघ चुश्धाधध्थाको प्राप्त होते थे, संसारके फगड़ोंसे दुर भागते थे | पश्थेतों और तपोचनोंकोीं निफल काते थे ओर पकास्तं =




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