मानस - पीयूष | Manas-piyush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ह४ उ दो० चो० और पृष्ठ कुप्तागंगामी के बल बुद्धि आदिका नाश र८(१०),३०१ छुयोगिनां सुदुलभं ४ छुर्दू १०, ४८ कुयोगी 2 म्र3 कुररी २१ (३), ३३४ कूटस्थ १४ (दे-ए), १४४ कैकसी १७ (३), २०४. केवल ४ छुन्दू ६, एप क्या रावशु विरोधी भक्त था... २३ (६), २६२-९ खरदूषणु-युद्ध और रावंण-युद्धका सिलान २१ (१), २४८-२४६ खरदूषणशादिकों वरदान २० छंद ४, र४५ क्षोभपूर्ण आत्मनिंदा ३७ (४-९); रेद० गायत्री जंपसे लाभ दो० १८, २३३ ' » . के बाद जल फेंकनेका प्रभाव; ड गुण १७ (२), रेर छन्द १; २०४, देर गुणकथन वियोगश्श्ज्ञारकी एक अवस्था ३० (६-१३), ३३१ देर छंद १; ३४३-३४४ १७ (१४), २१८- २९० गुण-प्रेरक गुसानी, गुनानी गुरुभक्तिके प्न्थ दो० ३४५, ३६६ गुरुके लचण सं० श्छो० १ सें, ६ ',» लक्तणोंका बणुन केवल 'अरण्यकांडमें श्लो० ?, ९ एज मं० सो० ६-१० गोचर श४ (३); १४४,१४६ रोपर श२ छन्द २; ३४४ गोविन्द ज् दर ज््3 गोस्वासी जी कंट्ूर मर्यादावादी थे... दो० ३३; ३५४ +». आौोर न्नाह्मण जाति दो० ३३, ३५४-३५६ ,,. और नारि जातिका आदश १७(४-क),२४(४-११), दी० ३८, २०४-९०८,३१७-३१८,३े ४, रेप ». के कुछ बेँघे हुए शब्द १६ (दे४); २३४ ४. का लोक व्यवहार परिचय. देख (४-६); रेप० 2». की सावघानता २७ (३), रुप क कक कही शैली १७ (४) ०७ ' ... रसॉंका रूपान्तर झन्तमें भक्ति या शान्त रसमें ही करते हैं. २० छन्द (४-७), २४४ ज्ञान कया है: १४ (७), १६३,-१६४,१६६-१क८ दो० चो० और पूछ ज्ञान और संवकते लक्षण १४ (७-टी, १६४ ज्ञानका परिपाक सक्तिपें होना उसका फन् है ११ (१६३, १९० ज्ञान और भक्तिका सेद्‌ जान लेनेसे सगवानके चरण में अविच्छिन अनुराग दो० १६, २०४ ज्ञान-विज्ञान १६ (३), १८१ ज्ञानाहंकार ४३ (६), ४०६. ज्ञाचियोंके पीछे भी माया लगती है ४३ (६); ४१० घनिष्ठ प्रेससूचक लीलायें ओटठसे होती हैं १०(१३),१०३ चतुसुज तथा झुजचारीके भाव देर (१); २८४१-३४ चरण और चरणकमलका सरेद ३४ (१०), ३४५६. चरणुचिद्ध ३० (१८), ३३३-२३४ 'चरणुपंकज १६ (६), १६४ चरणोंमें लपटना प्रेमविह्ललतासे.... ३४ (०), ३४४ चराचरका दुःखी होना (उदाहरण) २६ (६9, ३१४ चरितद्वारा उपदेश ३७ (४-६), रेप ० “चले” से नये प्रसंगका आरंभ ३७ (शै, ३७८ चिदाभास १४ (३-४), १४४ चुनौती दो० १७, रर चौपाई संख्यासे सागंका नाप ३ (४), ३४ जड़ अर बुध सं० सो०, १०,११ जगाना; जागना १० (१७), १०४-१०६ जगदूगुद् (राम) गुर ४ छ्ुंदू ६, ४४-४८ जदायु रामचरण॒चिह्मका स्मरण करते थे ३०(१८),३३३ जदायुकी आयु १६ (१४), ३१६ जगतूके नाना खूपोफो अज्ञानका श्रम कहना ठीक नहीं ३६ (पर), रे७र जगतकों सिथ्या कहनेका भाव का “कि जड़पदार्थोंमें जीवत्व ७ (न), पे जनकसुचा दो० २३, ३० (९); ९६६,३२५ जयन्तके परीक्षा लेनेका कारण... ? (३-४), १८-१६ ,». को चार प्रकारका दंड (शरणके पूव) २(४); २४ ,,. प्रसंग-द्वारा सुरमुनिको ढारस दो० रे, देर . , सें नवों रसोंकी झलक 3». सेट जय राम'से प्रारम्भ होने वाली स्वुति देर छुंद १, दे्४ जानकी ३० (७); देर




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