देशद्रोही उपन्यास | Deshdrohi upanyas

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Deshdrohi upanyas by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजानी अँधेरी राह | १७ निराशा से डाक्टर ने कहा--“इन जगहों मे उस का कोई नहीं । उसका घर देहली में हें । रुपये के लिये वह वही लिख सकता है, बच्नू छावनी मे सर- कारी दफ्तर को लिखने से तो रुपया मिलेगा नहीं ।” वजीरी फिर आपस में बहस करने लगे । डाक्टर मन में कल्पना करने लगा--उसके जीवन का मूल्य केवल चार हजार यदि किसी प्रकार राज था उसके भाई तक खबर भर पहुंच सके तो वे चार नहीं चालीस हजार अदा कर उसे छूडा लेगे । सब कुछ कुर्वान करके भी यदि किसी तरह एक बार फासी के इस फदे पे वह छूट सके तो अपनी राज को लेकर वह यरीवी मे भी सतोप में दिन बिता कृता्थ हो जायगा । डाक्टर ने देखा, नेण वजीरी चुप हो गये । उनमें से केवल एक जानकारी के अधिकार पे बोल रहा है । वननू और तुत्ती में दो मास रहकर जो णव्द पदतू के उसने समभे थे और अधिकॉद कल्पना की सहायता से वह समभ्ा कि बिज्ञ पठान अपने साथियों को समभक्ा रहा है, इस मामने मे रुपया सिलना कठिन हैं । डाक्टर सरकार का अफसर नौकर है । सरकार अपने आदमी की रिहाई के लिये रुपया कभी नहीं देगी । चार हजार नही, चार लाख वल्कि चालीस लाख रुपया खर्च कर फौज-फाटा, तोपे और हवाई जहाज ले अपने आदमी के लिये लडाई लडेगी पर चार हजार क्या चार रुपिया नहीं देगी । अग्रेजी सरकार ऐसी ही बेवकूफ है । बकरे का. कान भेडिया पकड लेगा तो कान नहीं काट देगी बल्कि भेडिया पकड़ने के लिये गोल के गोल बकरियो के कटा देगी । इस आदमी को रजनी में बेच देने के सिवा वारा सही । किस्मत की ठोकर से और भी टूर किसी अजान स्थान में जा पहुंचने की आशंका से डाक्टर ने गिडमिडाकर अधेड वजीरी को समभक्राया कि उसका पतन देहली के पते पर डलवा देने से बहुत जल्दी चार हजार रुपया, जहाँ वे चाहेगे पहुच जायगा । कुछ देर वहस होने के बाद तय पाया कि चार हजार रुपया बहुत होता है । वननू के किसी मातवर आदमी से डावटर की चिट्ठी देहली भिजवा कर तीन महीने तक रुपया भाने की प्रतीक्षा की जाय वर्ना जिस मोल हो, उसे गजनी में बेच रुपया बॉट लिया जाय । काठ में पाव फसे बैठे-बैठे डाक्टर की यह अवस्था हो गई कि छालो से घाव बनन लगे और बेठ पाना असम्भव हो गया । कभी वह दायों घुटना मोड इस करवट लेटता और कभी वाया घुटना मोड उस करवट । करवटों से




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