पालि साहित्य का इतिहास | Paali Saahity Kaa Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११. ) प्रतीत नहीं होगी कि जब कि हमारी अपनी भाषा में कुछ गिने-चुने पालि ग्रन्थों के मूल पाठों और अनुवादों के अतिरिक्त कुछ नहीं है, अंग्रेजों ने बीसों वर्ष पहले सम्पुर्ण पालि साहित्य के मूल पाठ और अंग्रेजी अनुवाद को रोमन-लिपि में रख दिया था। क्या पालि साहित्य भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अपेक्षा अंग्रेजी संस्कृति और सभ्यता से अधिक घनिष्ठ सम्बन्धित है ? क्या हमारी अपेक्षा पालि साहित्य का महत्त्व और ममत्व अंग्रेजों के लिए अधिक था ? क्या ५०० ई० पूर्व से लेकर ५०० ई० तक का भारतीय इतिहास हमारी अपेक्षा अंग्रेज लोगों के लिए अधिक ज्ञातव्य विषय था ? सन्‌ १९०२ में 'बुद्धिस्ट इंडिया' लिखते समय रायस डविड्स ने अपने देदा की सरकार की उदासीनता की शिकायत करते हुए लिखा था कि इंगलेण्ड में केवल दो जगह संस्कृत और पालि की उच्च दिक्षा का प्रबन्ध हे जब कि जमंनी की सरकार ने अपने यहाँ बीस से अधिक जगह इसका प्रबन्ध किया है “जैसे कि मानो जमंनी के स्वार्थ भारत में हमसे दस गुने से भी अधिक हों ।”” आज सन्‌ १९५१ में भारत में पालि के उच्च स्वाध्याय की अवस्था और उसके प्रति. सरकार के शून्यात्मक सहयोग को देख कर कोई भारतीय विद्यार्थी यह दुःखद अनुभूति किए बिना नहीं रह सकता कि सन्‌ ५१ भें भारतीय सरकार का जितना हित इस देश की संस्कृति और साहित्य के साथ दिखाई पाड़ता हे उसके कदाचित्‌ दुगुन और बीस गुन से भी अधिक क्रमश: इंगलण्ड और जमंनी का सन्‌ १९०२ में था ! जब पालि ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद और उनके मूल पाठों के नागरी-संस्करणों की उपर्युक्त अवस्था हू तो पालि साहित्य पर हिन्दी में अभी विवेचनात्मक ग्रन्थ लिखने का कोई आधार ही नहीं मिलता । किसी भी साहित्य के विस्तृत शास्त्रीय अध्ययन एवं उस पर विवेचनात्मक ग्रत्थ लिखने के लिए पहल यह आवश्यक है उसके मूल संस्करण और अनुवाद उपलब्ध हों, जिनके आधार पर उपादान- सामग्री का संकलन किया जा सके । हिन्दी इस छातं को पूरा नहीं करती । इसीलिए सिफ॑ दो-एक निबन्धों के अतिरिक्त पालि साहित्य के इतिहास के सम्बन्ध में यहाँ कोई विवेचनात्मक ग्रन्थ हमें नहीं मिलते । पुज्य भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी ने सिंहल में अपने अध्ययन के परिणामस्वरूप पालि ग्रन्थों का एक संक्षिप्त विवरण लिखा था जो “'पालि वाइमय की अनुक्रमणिका' शीषंक से काशी विद्यापीठ




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