चरित्रगठन | Charitragathan

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Book Image : चरित्रगठन  - Charitragathan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद ७७ उन्हें कितना पश्चात्ताप होगा । संभव है वे अलुतप्त हो कर एक- दम जीवन्सत की तरह समय बितावेंगे । दुःख, लज्जा ओर क्तोभ से उनका सन बराबर व्यग्र ही होता रहेगा । उनके पहले की काटप- तलिक आशा, उद्यम और उत्साह सभी एक साथ सिट्टी में मिल जायेंगे । अतएव है युवकगण ! यदि तुम लोग पढ़ने के समय श्रपने भविष्य सुख के काल्पनिक चित्र की रचना न करके अपने चरित्र को सुधारा ता नेराश्य के बदलें तुम्हारी ्राशा अवश्य फलवती हागी । काल्पनिक सुख के बदले सच्चे सुख पाझगे । जैसे कितने ही आदर्श पुरुष अपनी सच्चरित्रता से संसार में अक्षय कीति स्थापित कर के अमर हो गये हैं । तुम लोग भी उनके मार्ग का अनुसरण करके वैसे ही चिरकाल के लिए यशस्वी हो जाओगे । क्योंकि सब उन्नतियों का मूल सचरित्रता ही है | चरित्र सुधारने के लिए किन किन सामग्रियों की झावश्यकता है वह इस पुस्तक के पढ़ने से तुम्हें मालूम हो जायगी । इस में नई बात एक भी नहीं है, तथापि झादि से श्रन्त तक पढ़ जाने पर तुम समभ जाशागे कि इस पुस्तक में ऐसे श्रनेक विषय हैं, जिन्हें तुम पहले जिस प्रकार समझो हुए थे, उनसे उनका अथे विलच्चण है। जब तुम उन विषयों के यथाधे भाव जान लोगे तब झापसे आप तुम्हारी अआँखें खुल जायेगी । सच्चरित्र पुरुष का संक्िप्त लक्षण इतना ही है कि उसमें सद्य- प्रियता, शिष्टाचार, विनय, परोपकारिता श्रोर चित्त की बविशु- द्ध्ता, ये गुण पाये जायेँ, शेष जितने गुण हैं वे सब इन्हीं गुणों के अन्तर्गत हैं । ला




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