हिन्दी कहानियों की शिल्प - विधि का विकास | Hindi Kahaniyon Ki Shilp Vidhi Ka Vikas

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Hindi Kahaniyon Ki Shilp Vidhi Ka Vikas by लक्ष्मीनारायण लाल -Laxminarayan Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश थ से श्रारम्भ होता है, क्योकि पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से तभी से हिन्दी कहानियाँ अपने वैधानिक रूप में विकसित हुई । लेकिन शरध्ययन की दृष्टि से बीसवीं शताब्दी से पूर्व की श्रोर चल कर हमें समूचे हिन्दी-काल की साहित्यिक सम्पत्ति सं कथा-कहानी की दिशा में अन्वेपण करना चाहिए श्र उन समस्त तथ्यों को देंद्र लेना आवश्यक है जो इस की दिशा में है। हिन्दी साहित्य से भी भूव॑ हमें वैदिक, संस्कृत, पालि, प्राकृत श्रौर झ्पय्रंश साहित्य में कथा, ्ाख्यायिका, गाथा आदि रूपों से पूर्ण परिचय प्राप्त करना झावश्यक है । व्यापक रूप में हमें अपने यहाँ की उस महती परम्परा से पूण ज्ञान प्राप्त करना है जो कथा-कहानी; ्ाख्यायिका, श्राख्यान और उपाख्यान तथा क्रिस्सा; दास्तान श्रादि कलात्मक रूपों में बहुत प्राचीनकाल से हिन्दी-प्रान्त में उपस्थित थी । यद्यपि यह निश्चित हैं कि हिन्दी कहानी की वैज्ञानिक शिल्पविधि पश्चिम के सम्फर्क की देन है लेकिन यह भी निश्चित है कि कथा, आ्ाख्यायिका दास्तान श्रौर किस्से के विधान से जितना हमारा प्राचीन साहित्य परिपूर्ण है, उतना संसार का दे साहित्य नहीं । अतएव इस दिशा में जितनी हमारी पूर्व सम्पत्ति है, उस का ज्ञान हमारे अध्ययन की प्राथमिक विशेषता है, क्योंकि इस ने परोक्ष रूप से हिन्दी कथा-साहित्य को प्रभावित किया हैं । इस के उपरान्त कहानी के अ्राविर्भाव के स्वतंत्र अध्ययन की अ्रावश्यकता पड़ती है श्र प्रेरणा स्वरूप हमें उस की उत्पत्ति की उस व्यापक पृष्ठभूमि को भी देखना है जहाँ इसके जन्म के बीज बोए. गए है । इस संबंध में समूची उन्नीसवीं शताब्दी, विशेषकर उन्नीसवीं शताब्दी उत्तराद्ध--दरिश्चन्द्र युग की प्रेरणा और उस काल की सुख्य पत्र-पत्रिका्ो कु अध्ययन हमारे लिए. सब से अधिक श्रावश्यक है । फिर बीसवी शताब्दी के प्रारम्भ का युग; हिन्दी कहानियों के श्ारम्भ, प्रयोग और विस्तार के मेरुद्रड “सरस्वती” (१६०० ई०) और हिन्दी गल्पमाला” (१६१८) झादि मासिक पन्नों के झध्ययन की आवश्यकता है । इस के उपरान्त ही हिन्दी कहानियों की शिल्पविधि निश्चित रूप से हमारे सामने आरा जाती है । तत्पश्चात्‌ हमें इस के विकास और उत्क के उस व्यापक क्षेत्र का झध्ययन उपस्थित करना है; जिस में हिन्दी कहानियाँ अपनी मुख्य प्रहडतियों में बैंटकर विकसित हुई हैं । इस दिशा में केवल प्रदवत्तियों ..... हरिर्चन्व्र मैगजीन १८७३ ईं० जी इरिस्चन्दू चंद्रिका १८७४ ट् हिन्दी प्रदीप १८७७ ई०




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