मिट्टी और फूल | Mitti Aur Phool
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिट्टी और फूल
चुद्धिजीप श्ादशमुग्ध मानव भी मरी ही बाति हैं,
पेसम्बर आर शिफम्दर का मसुर्भसे द्वप है, मुझमें इति है !
ररे कनवान पर उड़गन थी दारा चारत टिमकम - मात,
निनकी ससरंगी मोदी में सिर घर सूरलकिरणों सोतीं !
पं गत्यलोक की मिट है, में सूबलाक को एक ्ंरा;
नो ह लिस घर से किस्म, है गरा भा लो सदी संश
(२)
इसे में द्ाया रस चसस्त, थिडी वो. चूलाजनसिला फूल !
पल का छुलजुला फूल जेस, दूसता समोर में भूल भू !
जिस सिटी से जीवन पादा, बद उस सिटी को या मूल,
धन ते बुलबुला फूल जस, दसवा समीर मे सूल कूल ?
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देश जो. तारों को, सनालरमं थी उड़ जाऊँ बहुत दूग्,
है पदों जल +हा सीलम के मंदिर में बचे कप श्र!
तितली को देखा शरीर कटाना सिसका दे दो दो चढ़ल पं
मीना आई तो उससे भी उड़े को माँग चल पंत !
फिर आरा निकली बने की विडिला कनके चुनने, लुर्गा लग
चला मुक भा उड़ा कढाँ वां फूल लगा उनसे कहने !
बड़ा की लाल ससन्तों थी, था फूल सुनायी रंगगरा,
बस पल में दोखा चिड़िया के सुंद मे बढ डंठटल दरा-दरा !
ऊपर था. नीला. ऑ्रासमान, दौग्वी नीचे संना 'घरती,
थल का बुलबुला फूल टूटा, पर मिड़ी इसमें क्या करती १
तर गिरा घरा पर फूल, मिला सिटी में, छिन में दत्ा धूल !
जिस मिट्टी से जीवन पाया, था उस मिड़ी को गया भूल !
गिट़ी कहती- में सच कुछ सहती रहती हूँ चुपचाप पड़ी
गत्रातप मे गल त्रार सूख पर नहीं राज तक गली सड़ी !?
User Reviews
Reetu
at 2020-01-17 15:39:47"10"