भारत - गीत | Bhaarat Giit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निवेदन ९
था जांति को अपने लिये ऐसी परिस्थिति उपस्थित कर लेना अपने
अनिष्ट का श्रावाइन करना है ।
सामयिक पत्रों में बरसों से हिदी-लेखकों की लेखनी से भिकले
हुए श्रनेकों उपालंभ श्रधवा उपालंभों में सने हुए लेख देखने में
बाते रहे हैं। कई पौड़ लेबर भी इस प्रवृत्ति में परिलिप्त पाए गए
हैं । यद उपालंभ ईश्वर को दिए हुए उलाहने हैं कि वह भारतत्रषे के
धार या हित के लिये कुछ नहीं कर रहा है, उनमें प्राथना भी शामिल'
है कि अब देर न करो, श्रात्यों श्र उचारो, जैसे पहले समयों में पुका-
रते ही झा जाते थे, बीसों बार भक्तों की सुध ले चुके हो, हमारी बिरियाँ
क्यों गहरी नींद में ग़क़॑ हो रहे हो, इत्यादि इत्यादि । ईश्वर से पद-पद
पर श्रपनी सेवा कराने की यह कामना प्रवृत्ति हमारी अधोपकषिणी,
श््रवांछनीय, सानसिक स्थिति है । इसके परिहार को दृष्टि से पाठकजी
ने दो एक पद्य उपालंभीय पथ्यों के सक़ाबिले में भ्रपने उक्त उद्देर्य को
उच्लिखित किए विना ही प्रकाशित किए थे, यथा--
नट नागर हैं न कहीं अटके ये इस संकलन
दो झाजा झाजा शांति शक्तिदा ्ञाजा । में सम्मिलित
उराहिने को उत्तर हैं।
इस ्राशा से कि मेघावी जन उनके झभिपाय को अवश्य अवगत
कर लेंगे । परंतु परिणाम विपरीत हुआ । उपालंभों के लेखकों
को उनमें कुछ श्रौर गंध श्राने लगी जिसके सूचित करने की यहाँ
पर श्रावश्यकता नहीं, श्र पठकजी का प्रयास विफल हु ।
उपालंभन परिपाटी श्रभी तक यथावत् प्रचलित है । स्वायत्तता
को उषा अभी उदित नहीं हुई ; पराश्रय-वृत्ति ही झभी प्रबल दिखाई
पढ़ रही है । परंतु संभव है, कुछ समय के झनंतर स्वतः परिवतन
हो जाय ।
इन गीतों को पाठकजी ने परमार्थ दृष्टि से रचा है और वह
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