सांख्यिकी के सिद्धान्त | Sankhyiki Ke Siddhant

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Sankhyiki Ke Saddhant by देवकीनंदन - Devkinandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ परिचय तथा परिभाषा ( ए५00एटघिं०00 रत िदिफीनिएए मानव सम्यता के विकास के साथ-साथ ही गणन-कछा का भी घिकास हुआ । आरम्भ में, जब तक कि यून्य का आविष्कार नहीं हुआ था, बड़ी संख्याओों की गणना करने में बहुत असुविधा होती थी परन्तु धीरे-वीरे इस कला में सुवार हुआ भौर अब तो ऐसी प्रणाखियाँ निकाल ली गई हैं जिनके द्वारा बड़ी से वड़ी संख्या की गणना करना एक बहुत ही सरल तथा साधारण कार्य हो गया है । संख्याओं का उपयोग प्राचीन काल ही से बहुत देवों में होता थाया हूँ । उस समय शासक अपने देश की सेना तथा खाद्य-पदार्थों की मात्रा के वारे में अतुमात लगाने के लिए संख्याओं का प्रयोग करते थे । अब से लगभग ५००० वर्ष पूर्व मिस्र देश में वहाँ की जनसंख्या तथा राप्ट्र-वन के वारे में आाँवड़े एकव्रित किये गये थे । इन्हीं आँकड़ों के कावार पर वहाँ पिरामिड बनाने का कार्य बारम्भ किया गया था । इसके लगभग १५०० वर्प चाद अर्थात्‌ अव से लगभग ३५०० वर्ष पूर्व मिस्र हो में रैम्स हितीय ने भूमि सम्बन्वी आँकड़े एकत्रित किये थे । जव से लगभग ३००० वर्ष पूर्व चीन में भी इसी प्रकार के आकड़े एकत्रित किये जाने का प्रमाण मिलता हैं । भारत में भी अच से लगभग २५०० वर्ष पूर्व मौर्यवंक्ी राजाओं में, देश के बारे में चहुत-सी सामग्री संकों के रूप में एकत्रित करने की प्रया थी । इसके पश्चात्‌ गुप्त साम्प्राज्य के अनेकों शासकों ने विभिन्न क्षेत्रों में संख्याओं का प्रयोग किया । मुगल-साम्राज्य में भी विशेषकर मकवर के समय भारतवर्प में बहुत से क्षेत्रों में संख्याओं का उपयोग होता था । “आइनें गकवबरी' नामक पृस्तक में मूल्य, वेतन, जनसंख्या इत्यादि के बारे में बहुत समंक मिलते हैं। अन्य देवों में भी इसी प्रकार संख्याओं के उपयोग के बहुत से प्रमाण मिलते हैं । परन्तु प्राचीनकाल में संख्याओं के उपयोग की सीमा बहुत संकुवित थी । सामाजिक डयास्त्रों में तो अंक्रों का प्रयोग बहुत ही कम होता था । पिछले कुछ वर्षों से अंकों के प्रयोग की सीमा बहुत तेजी से बढ़ रही है. और अब तो संख्याएं लगभग सर्वव्यापी हो चुकी हैं । आधुनिक संसार में संख्याओों का महत्व निर्विवाद हूँ। व्यावहारिक जीवन में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जिसमें संख्याओं के उपयोग की जावदयकता न पड़ती हो । ब्यक्तियों




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