अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का संक्षिप्त इतिहास - १९२०-१९३६ | Antrrastriya Rajniti Ka Sankshipt Itihas -1920-1936
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
453
श्रेणी :
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(Click to expand)प अ्रन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का संक्षिप्त इतिहास (१९६२०-१६३९)
दक्ति-संतुलन (79 882८ 0 शि0फ़21)
इस उपाय के श्राधारभुत सिद्धान्त राज इतने श्रधिक गलत रूप में समभे जाने है
श्र इस दाब्द का इतना अधिक गलत प्रयोग किया जाता है कि इस बिपय पर सुर
में ही झ्रपनी धघारणाश्रों को स्पष्ट कर लेना श्रत्यघिक महर्वपुर्ग हैं । यह विचार
प्राचीनतम काल में भी देखा जा सकता है श्रौर यद्यपि कभी-कभी इसे गलत या थ्रपुर्ग
ढंग से लागू किया गया है। पर यह प्रथम विदवयुद्ध के स्ारम्भ तक अन्तर्राप्ट्रीय
संबंधों में सर्वत्र स्वीकृत सिद्धान्त था । तथापि, यह समभा जाता था कि गुद्ध हो दर
सदा के लिए कलंकित कर दिया है” ग्रौर यह बिल्कुल सच है कि ठुस नाम से १६१
तक जो प्रणाली प्रचलित थी, वह कुछ समय तक इस दुदिन को निलंबित फर शेय।
पर इसके परिणामस्वरूप दोनों बास्त्र-शिविरों में शक्ति का ऐसा संपय हो गया कि
झन्त में होने वाले विस्फोट से भ्रभुतपूर्व विनाश का खतरा पैदा ट्ो गया । परन्तु जब
लगातार श्रौर सच मानते हुए यह बात कही जाती है कि युद्ध से शक्ति-सतूलग के
महान नाम को सदा के लिए कलंकित कर दिया तब यह भी कहां जा सकता है कि
स्थिति को बिल्कुल गलत रूप में समका गया श्रौर वास्तव में प्रथम थिस्कतुद्ध तथा
इसकी यातनाएँ कुछ समय पहले इस दीघं काल से प्रचलित नीतिकता के त्याग को
अ्रनिवायं परिणाम थी ।
शक्ति-संतुलन पोलिंबि्रस (स्स०01501घ56) के समय से बोसलरी 1 81177)
के समय तक श्रौर इसके बाद भी जिस रूप में समभका जाना था उसकी सती
परिभाषा एन्साइक्लोपीडिया ब्िटैनिका में यह की गई है कि इसका सर साप्दों
के बीच ऐसा न्याय्य संतुलन कायम रखना है, जो इनमें से फिसी एक को सेप
पर हावी होने की स्थिति में झ्राने से रोके | इस बात को ब्यायह्रारिया शाम
नीति के शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है फि सभाज की सुरक्षा फे लिए निसी
संभावित भ्राक्ात्ता की अत्यधिक ताक़त से होने बाले खतरे के परिग्द साभूदिया फायेन
वाही करनी होती थी । ऐसा मानने पर यह स्पष्ट है कि एसमें जा बाय हैं थे राषन
संघ ( लीग भ्राफ़ नेशन्स ) की प्रसंविदा ( कौवैनेंट ) में निरूपिन सार्युद्धि सुरना के
तंत्र के सह थीं । इसलिए यह भी' एक वात है जिसमें युद्ध से पहन यीर पी के
संसार एक दूसरे के जितना निकट पहले-पहल प्रतीत होते है उसरी कहीं झाधिप लिफ्ट
थे । सच तो यह है कि दोनों प्रशालियाँ प्ृष्ठबल ( हाफ ते परे भरोगा करती
थीं पर पृष्ठबल, जिस कासून को लागू करता था बह प्रत्येक अवस्था में क्रिन था ।
राक्ति-संतुलन कहता था, 'तू भयंकर मत बन ।' युद्धो्तर प्रशानी करती थी, तु युद्ध में
मत पढ़ । वास्तव में सारभूत भेद यह था कि पुरानी प्रणाली खतरे का फूड पहने
सामना करती थीं भौर यह समाज से सब गरृद्धों को रीफने का श्राग्रह ने करती थी,
बल्कि सिर्फ़ उन युद्धों को रोकने के लिए कहती थी जिनसे सारे समाज की हानि हो ।'
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१, 'शक्ति-संतुलन का वह महान खेल जो भष सदा के लिए बलंकिति हो गया इस
परदावलि का सबसे पहले अयोग विल्सन ने कियां था । उत्तके चार सिद्धान्तों में से दूसरे के प्रसंग
में १६ फरवरी १९१८ के भाषण में इसका प्रयोग किया गधा हू ।
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