वैदिक व्याकरण | Vedik Vyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवादकीय कप्टताटडतचाट पब्चस्य औतुटिटपिफ्ट विगेषण ाट5टाए इए5(टावा संविकरणक रूप शिपक्ताघताए 5पर्पिड क्दन्त घ्रत्यय किपिवशाछाफ एएा3 गणरूप (गुणात्मक रूप ) उर्तपफूपिटविएट अम्यास- 2015 लुझ कर टरीटजापट स्वामिसुचक कापणा0पघाा सवेनाम कर फठाधिटो डाए। रेफीकरण 8-201150: स-लझ् 5<८०पतंवाए 5घरप्तित तद्धित प्रत्यय 86८00 ४८7०... घ्रक्रियारूप (गणतर रूप) डफह-सतायेड सिंप-लुड 5081 852 स्वरोन्मुख अनुनासिक वा ऊष्म डॉणुपण ट्तिएट लेट 5पघात अघोप पुफटच्ता2पतट ना ८४ पर्च(जिद्धा-पर्चभाग) प०त्थॉएट स्वरी प्रस्तुत अनुवाद में एक-एक पारिभापिक बव्द सा किया, कपल || पिन्न्यनधा ना |. --.. | साम्यास लुडः सघोप अन- | स्वनन्त अ नासिक नासिक्य सझघर्पी लेट (२) लेट न्न्न -ए-.. | विकरणवोघक अट या आटू आगम गण स्वरीय का ठीक-ठीक हिन्दी रूप ढ ढ़ने के लिए कितना प्रयास किया गया इसे स्थाली पुलाकन्यायेन एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा रहा है । मंकडानल ने अपने ध्याकरण में उप्रफिशंघज८ दाव्द का अनेक स्थानों पर प्रयोग किया है । इसका “भाववाचवक कदन्त” अनुवाद पुज्य पिताजी को जंचा नहीं । “वा आदि के भी भाववाचक क़दन्त होने के कारण अतिव्याप्ति होने ७ का डर था । 'तुमु कदन्त' में उन्हें अव्याप्ति का भय था वयोंकि वेद में केवल तुम




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