चीनी जनता के जनतंत्र की स्थापना | Chini Janta ke Jantantr ki Sthapana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.93 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्य देशोंकि मजदूर वर्गको सावधान कर दिया था कि यूगोस्लावियाके टीटो गुटने
समाजवादके साथ ग्रदरी की है और इस गुटकी चीतिके कारण पूँजीवादका पुनर्थापनर
हो रहा है' तथा यूगोस्डाबिया साम्राज्यवादका गुलाम बन रहा है ।
कम्युनिस्ट और मजदूर पार्टियों के सुना फेन्द्रका प्रस्ताव प्रकाशित होनेसे पहले
अमरीकी गुप्तचरों के बेलग्रेड दलने योजना बनायी थी कि हंगरीमें जनताकी जनवादी
व्यवस्था से पूँजीवादी व्यवस्था में ” परिवर्तन शान्तिपूर्ण ढंग से ”” किया जायगा। उस
योजना का आधार उनका यूगोस्लाविया का अनुभव था । प्रस्ताव प्रकादित होने के वाद
साजिश रचने वाठे समझ गये कि वे प्ूँजीवाद का पुनरस्थापत “” झान्तिपूर्ण ” ढंग से
करने में सफल नहीं होंगे । इसलिये उन्होंने ते किया कि तमाम प्रतिक्रियावादी शक्तियों
की मदद से हथियारबन्द पुत्दा के जरिये ( मुट्ठी भर दल द्वारा शत्रवल से यकायक )
सत्ता पर कब्जा किया जाय । मदद करनेवाली शक्तियों थीं बाहर से आनेवछि फ्रौजी
दस्ते, यूगोस्डाव फोजों की सीधी दखलून्दाज़ी और मुख्य शक्ति के रुपमें अमरीका की
मदद । राूवादी फासिस्ट एजेन्सी ने खुला फ्रासिस्ट शासन कायम करने और युद्ध
छेड़ने का रास्ता अपनाया ] अमरीकी साम्राज्यवादियों ने टीटो और रायक पर यहीं
जिम्मा डाला था । अमरीकी साम्राज्यवादियों की योजना है: एक नया मदायुद्ध छेडना ।
मध्य और दक्षिणी पूर्वी योरप में एक सोवियत-विरोधी शुट कायम करने की यह
कोशिश उसी का एक संग थी । यही कारण है कि इन गन्दी योजनाओं के मेदका
खुलना और उनकी असफलता शान्ति के पक्ष की एक बड़ी जीत है और जंगखोरों
की एक भारी हार है ।
साम्राज्यवादी पक्षमें जो खलबली मच गयी है और बुदपेस्त के मुकदमे के
सम्बंध में वे जिस तरदद चीख-चिछ्ा रहे हैं, उससे पठा चलता है कि वाल स्ट्रीट के
शासकों पर कैसा ज्वर्दस्त प्रद्दर हुआ है। गुप्तचरों और हृत्वारोंका बेलग्रेड दल ** दुदा-
पेस्त की चाल ” के बारेसें होश-दवास खोकर बढ़बड़ा रहा है। इससे तिर्फ यही साबित
होता है कि उसे डर ठग रहा है कि अमरीकी मालिक इस नतीजे हर पहुँच जायेंगे
की उनके काट के पत्ते टीटो और कम्पनी अब चले जा चुके हैं; और उचकी * काट ?
अब कारगर नहीं हो सकती | टीटो दढकों डर लग रद्दा है कि उन्हें कहीं
उठा कर फेंक न दिया जाय जैसा कि जाने गये गुप्तचरों के साथ हमेगा होता है ।
बुदापेस्त का मुकदमा बताता है कि वर्ग संघषेने--विजयी की तरह आगे बढ़ते
समाजवाद और मरते पूँजीवाद के वीच संघर्ष ने उम्र रुप धारण कर छिया है । इस
संघष के अनुभव से कम्युनिस्ट पार्टियों को दिक्षा मिलती है कि जनता द्वारा सत्तापर
कच्चा कर लेने का मतलब यह नहीं होता कि पछाड़ा हुआ पूँजीपति वर्ग अपनी हारी
जगहें फिर से जीतने की कोशिश वन्द कर देगा। इस अजुभव से शिक्षा मिलती है
कि अपना आधिपत्य फिर हासिल करने के लिये साम्राज्यवादी हर ज्रिया--नात्दे और
धूतता से भरे सभी ज्षरिये, इस्तेमाल करेंगे ।
बुदापेस्त का मुकदमा कम्युनिस्ट और मजदूर पार्टियों के सामने इस वात को /
नये जोर के साथ रखता है कि जागरुकता और क्रान्तिकारी चैंतन्यता बढ़ाने की
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