जैन कहानियां भाग - १२ | Jain Khaniya Part - 12

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महेंद्र कुमार - Mahendra Kumar

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मुनिश्री नगराज जी - Munishri Nagaraj Ji

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सोहनलाल बाफणा - Sohanlal Bafana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे आरासशझोमा पलास ग्राम में श्ररिनिषवर्मा ब्राह्मण रहता था 1 वह यज्ञ आदि श्रनुष्ठानो मे निपुण और चारों वेदों का पारगामी विद्वान था । उसकी पत्नी का सलाम ज्वलनदिखा था । कन्या का नाम विद्युत्प्रभा था । वहू विशेष सुन्दरी थी । जव वह झाठ वपं की हुई, उसकी माता की छाया उस पर से उठ गई । विद्युत्‌- प्रभा को गहरा झ्राघात लगा। साथ ही सारे घर का भार भी उस पर ही थ्रा पडा । वह सूर्योदय से पहले ही उठती, घर की सफाई करती, रसोई-घर को लीपती ग्रौर उन सब कार्यों से निवृत्त होकर गौश्नों को चराने के लिए जंगल मे जाती । मध्याह्न मे गौझो को लेकर घर भात्ती, दूध निकालती, पिता को भोजन कराती, स्वय भोजन करती ग्रौर गौओ को लेकर पुन जगल चली जाती 1 सन्ध्या के बाद घर लौटती । साय- कालीन कृत्यो से जब निवृत्त होती, वह बहुत धक जाती थो। फिर भी बह पिता के सोने पर ही सोती श्रीर




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