अँधेरे के दीप | Andhere Ke Deep

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Andhere Ke Deep by ओमप्रकाश शर्माडॉ. रामविलास शर्मा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्त-व्यस्तन्सी बंबी धोती कु्ते के ऊपर धचकन पढ्िनिकर बिना कुछ किसी से कहे-सुने छदम्मीलाल श्रवोध बालक को माह संविल- दास की बगल में जा बैठा । साँवलदास ने कार स्टार्ट को श्रौर पाँच मिनट बाद नई दिल्ली के मुख्य दादार कनाट सरकस की जगमगाती हुई सड़क पर जा रोकी 1 कमी दारु पी है छदम्मी 2 नहीं तो चाचा तभी तो तुक से छोटा-मोटा दुख भी नहीं केला जाता । उठ भाज तुके जिन्दगी की रंगीन तस्वीरें दिखाऊँगा । फुर्ती के साथ छदम्मीलाल घोती सम्मालते हुए कार से उतर गये । यह था बार अर्थात्‌ दारावसाना बड़े प्ादभियों का शरावखाना 1 बड़े-बड़े सरकारी प्रफसर भोर लखपति व्यापारी यहाँ संघुक्त मोर्चा बना कर दराव पीते एक-दूसरे के पापों पर पर्दा ढालकर सालिप्र भौए शुद्ध हृदय से यहाँ एक-दूसरे के रवाश्प्य के लिये जाम पीये जाते हूँ । तो तुने कमी नहीं पी ? धीमे स्वर थे साँवलदास ने पूछा 1 नहीं । घदम्मीलाल ने कम्पित स्वर में उत्तर दिया । ककीरा ने छुक में एक भी भ्रादत लॉटे जैसी नहीं ढाली भीर वह खुद भी बाद्दीं का रुस्तम था वरा दो पैंग ब्दाइट हार्स 1 टासे तो घोड़े को कहते हैं ना चाचा 7 हाँ ब्हाइट हासे याने सफेद घोड़े वाली 1 वैदा दो पैंग ब्हिस्की से श्राया । साथ में एक प्लेट भुने हुए काश भीयथे। सावलदीप्त के संकेत पर एक सांस मे ही छदम्मीलात प्याला चढ़ा गये । बड़ी कड़वी है 1 धीमे बोल लोग सुनेगे तो हृंसेंगे । काजू खा जायका ठीक हो जायगा । मजा लेकर एक-एक पूंट पीते हुए सांवलदास ने कहा 1




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