खड़ी बोली कविता में विरह - वरन | Khari Boli Kabita Me Birah Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेमरस ] [७ . द्विधा. कृत्वात्मनोदेहमर्घेन पुरुषोभवत्‌ । प्रघत नारी तस्यां स विराजमत्सूजत्य्ु: ॥। बाइबिल में भी नारी-सृष्टि का इससे मिलता-जुलता वर्णन है । ईइवर ने कहा कि यह ग्रच्छा नहीं कि पुरुष भ्रकेला रहे, मैं उसके लिए सहायक का निर्माण करूंगा । तब ईदवर ने श्रादिमानव झ्रादम को गहरी नींद सुला कर उसके बाम-भाग की एक श्रान्त से नारी की सृष्टि की । श्रादमी-मेन-के द्वारा निभित की जाने के कारण नारी नेन कही गई है। तब श्र।दम ने झ्रपनी प्रिया को देख कर कहा कि यह मेरी भ्रस्थि की झ्रस्थि है, मांस का मांस है ।* नारी नर के तथा नर नारी के जीवन का जीवन है, हृदय का हृदय है, शरीर का शरीर है । उसके प्रति प्रेम का भ्रत्यंत तीव्र होना स्वाभाविक है । भारतीय श्राचार्यों ने नर-नारी संबंध को अत्यन्त पवित्र हष्टि से देखा है, तथा पति-पत्नी के स्थायी प्रेम को ही श्ूँगार के रस-क्षेत्र में स्थान दिया है, परोढ़ा एवं वेद्या के शभ्रनुराग को रस की स्थिति तक नहीं जाने दिया :-- परोढ़ां ब्ज॑यित्वा तु वेदयां चाननुरागिणी मु । प्रालम्बनं नायिका: स्युदक्षियाद्याइच नायका: ॥ 3 मानव-हृदय के भावों में पवित्र दाम्पत्य-प्रेम एक ऐसा विद भाव है, जो प्रत्येक द्ा में स्पृह्णीय लगता है, दुःख में भी झपरिवत्तित रहता है, जिसकी प्रगति में शारीरिक परिवर्त॑नों से कोई व्यवधान नहीं भ्राता, तथा जो सत्र एकरस एवं पावन रहता है । प्रेम के स्वस्थतम एवं पवित्रतम रूप के भ्रमर विदलेषक महाकवि भवसूति ने लिखा है-- भ्रद् त॑ सुखबुः खयोरनगुणं सर्वास्ववस्थासु यदू । विश्रामो हृदयस्य यत्र जरसा यस्मिन्नहार्यों रस: ॥। कालेनावरणत्ययात्‌ परिणते यत्स्नेहसारे स्थित । भद्र' तस्य सुमानुषस्य कथमप्येक कि तत प्राप्यते ।। ... श्थूगार रस का वास्तविक क्षेत्र दाम्पत्य रति है, यह श्राचार्यों के विवेचन तथा परिभाषाश्ों से स्पष्ट है। श्पंगार की महिमा से ध्रत्यधिक श्राक्रांत होकर १. मनुस्मृति (१३२) २. होली वाइविल (झ्रोल्ड-टेस्टामेंट, जिनेसिस) ३. साहित्य-दपंगा (३१८४) ४. उत्तर रामचरितमु (१1३३)




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