श्रावक का सत्यव्रत | Shrawak Ka Satyavrat

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Book Image : श्रावक का सत्यव्रत  - Shrawak Ka Satyavrat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) सत्य का महत्क 1 बट समन सर्च्चंमि थिड कुव्यहा । एत्थोवरए मेहावी ,। सब्वे पाव॑ कम्म जोसइ ॥ घ्प्ा० सू० प्र० श्रु० “यथावस्थित वस्तु-स्वरूप को प्रकट करनेवाला सत्य ही है । कुमाग का परित्याग करके, जो मनुष्य सत्य को अरहण करता दे और उसके पालन में' पैय्य॑ रखता है, वही तत्वदर्शी, सब पाप- कर्म्मों' का नाश करता है ।” शास्त्र के उक्त प्रमाण से प्रकट है कि, “सत्य” पापों का नाश करने वाला है । बिना सत्य को अपनाये, वे पाप-कम, जो अनन्त काल से जीव को घेर रहे हैं--दूर नहीं दोते । तात्पयं यह कि, पापों का नाश करके स्वर्गादि सुखो को प्राप्त करानेवाला, सत्य दी है । संसार मे, प्रत्येक सजुष्य धर्म का इच्छुक रहता और अपनी आत्मा का कल्याण चाहता है । 'ात्मा का कल्याण धर्म से दी दोता है। जिससे कि श्रात्मा का कल्याण होता है, उस धर्म में अधान चस्तु “सत्य' ही है । यदि, धर्म से सत्य को प्रथक_कर दिया जाय, तो धर्म नाममात्र के लिए शेष रद्द जायगा, 'अ्थांत्‌ 'अपू्ें 'होगा । लेकिन धर्मात्मा तभी बन सकते हैं, जब वास्तविक सत्य का पालन किया जाय । नामधारी सत्यवादी धर्मात्मा नहीं बन सकते । वैसे तो सत्य' वस्तु को सब मानते हैं, लेकिन इसे पूरी सतरद कायरूप में नहीं' लाते ।




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