श्रावक का सत्यव्रत | Shrawak Ka Satyavrat
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७ )
सत्य का महत्क 1
बट समन
सर्च्चंमि थिड कुव्यहा । एत्थोवरए
मेहावी ,। सब्वे पाव॑ कम्म जोसइ ॥
घ्प्ा० सू० प्र० श्रु०
“यथावस्थित वस्तु-स्वरूप को प्रकट करनेवाला सत्य ही है ।
कुमाग का परित्याग करके, जो मनुष्य सत्य को अरहण करता दे
और उसके पालन में' पैय्य॑ रखता है, वही तत्वदर्शी, सब पाप-
कर्म्मों' का नाश करता है ।”
शास्त्र के उक्त प्रमाण से प्रकट है कि, “सत्य” पापों का नाश
करने वाला है । बिना सत्य को अपनाये, वे पाप-कम, जो अनन्त
काल से जीव को घेर रहे हैं--दूर नहीं दोते । तात्पयं यह कि, पापों
का नाश करके स्वर्गादि सुखो को प्राप्त करानेवाला, सत्य दी है ।
संसार मे, प्रत्येक सजुष्य धर्म का इच्छुक रहता और अपनी
आत्मा का कल्याण चाहता है । 'ात्मा का कल्याण धर्म से दी
दोता है। जिससे कि श्रात्मा का कल्याण होता है, उस धर्म में
अधान चस्तु “सत्य' ही है । यदि, धर्म से सत्य को प्रथक_कर दिया
जाय, तो धर्म नाममात्र के लिए शेष रद्द जायगा, 'अ्थांत् 'अपू्ें
'होगा । लेकिन धर्मात्मा तभी बन सकते हैं, जब वास्तविक सत्य
का पालन किया जाय । नामधारी सत्यवादी धर्मात्मा नहीं बन
सकते । वैसे तो सत्य' वस्तु को सब मानते हैं, लेकिन इसे पूरी
सतरद कायरूप में नहीं' लाते ।
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