आधुनिक बोध | Aadhunik Bodh

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Aadhunik Bodh by रामधारी सिंह दिनकर - Ramdhari Singh Dinkar

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रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।

'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।

सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जआधुनिवता थौर भारत-ध्म 2: १५. विश्वास रहा हैं और भारत में घर्म जोर नैतिकत्ता का दिवास इसी विश्वास रा अधीन हुआ है। पह ध्यान देने की बात है कि भारत केवल जास्तिक दर्शन का गढ नहीं है। सांध्य सेपवर भी है बोर निरीर्वर भी । जैन और घौद्ध मत ईश्वर वी सता में विश्वाम नहीं करते, न यही स्वीकार करते हैं कि सुप्टि की रचना हिसी अदृश्य देवता ने की है। लेविन इस एक वात में भारत के बास्तिक गौर नास्तिक, दोनों ही प्रदार के दर्शन एक समान विश्वास करते हूं कि परलीक सत्य है, अदृश्य योनियों का अस्तित्व है और मरने के वाद जोव का जन्म भी होता हैं। जस्मान्तर- वाद का खटन यहाँ केवल चार्वाक ने दिया था, किन्तु उसके अनुयायी इस देश में थे या नही, यह रहस्य अन्नात है। और यह विश्वास केदल भारत दर हो विश्वास नहीं है, वह समस्त प्राचीन समार को विश्वास है, यरापि जन्मान्तरवाद में केवल हिन्दू और वौद्ध हो विश्वास करते हैं। इसलिए आधुनिकता के प्रमंग में भारत के समक्ष जो कठिनाई है, वह कठिनाई केवल भारत वी हो नही, समस्त संसार की समझी जानी चाहिए। मुख्य प्रबन यह नही है कि आधुनिकता बी सम्पूर्ण विजय के वाद भारत भारत रहेगा या नहीं । मुख्य प्रश्न यद्दी हो सकता है कि आधुनिकता के आत्रमण से प्राचीन जगत के इस विश्वास की रद बी जा सबती है या नहीं कि सब कुछ यही समाप्त नहीं हो जाता, कुछ चीजें मरने के वाद भी शेप रहती हैं; सव कुछ वहीं तक नहीं है, जहाँ लक विज्ञान का औजार पहुँचता है, कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो गोचर जगत के परे और इन्द्रियो की पहुँच के पार हैं। भारत की विशेषता यह है कि वहू समस्त संसार की लड़ाई अकेला लड़ रहा है । जब से विज्ञान की बढ़ती हुई, प्राय: सभी देशों मे अतीत गौर वर्तमान के वीचे संघर्ष छिड गया बौर प्राय: सभी देशों में अतीत वर्तमान से हार गया । क्रेवल भारत में वह आज भी जोरों से युद्ध कर रहा है। और ससार जो भारत की ओर एक अस्पप्ट आशा से देख रहा है, उसका भी कारण भारत की अतीत प्रियता ही है। नये ज्ञान के प्रति भारत हमेशा ही उदार रहा है। नये घर्मो, नयी सस्कतियों ओर नयी विचारधाराओं को अपनाकर भारत भी परिवतित्त होता रहा है; लेकिन विचिन्नता की वात यह है कि भारत जितना ही बदलता है, उतना ही बह अपने आत्मस्वरूप के अधिक समीप पहुँच जाता है । यही विलक्षणता भारत का अपना गुण दै और इमी गुण के कारण भारत से लोग यह आशा लगाये बैठे हैं कि भाधुनिकता को अपना लेने के वाद भी भारत भारत रहेगा और संसार के सामने एक नया नमूना पेश करेगा 1 सृष्टि-्वोध को आाघुनिक कल्पना उस कल्पना से भिन्न है, जो प्राचीन भारत में रही थी अथवा जो सारे प्राचीन विश्व मे थी। लाधघुनिक कल्पना यह है कि सृप्टि मपने नियमों से बाप चालित है और उन्ही नियमों के परिणामस्वरूप घरती




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