पांच - फूल | Panch -phool

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस्तीफा र दुफ़्तर का चादू एक चेज्ञवान जीव शे। सज्ञदर को पाँखें दिसाश्रो, तो चद्द व्योरियों बदलकर खड़ा हो जावेगा । छुली को एक ठौंट बताघघो, तो सिर से वोक फेंफकर घपनी राद जेगा । किप्ती मिसारी को दुतकारो, तो वह तुस्दारी घोर युस्से की निगाह से देखकर ला जायगा । चदों तक फि गधा थी कभीनकभी तकलीफ़ पाकर दो-लखियों काटे लगता है ; मगर येयारे दुप़रतर के घावू को घाप चाहे रखिं दिसायें, डॉट बताये, दुतकररें या ठोपरें सारे, उसके साथे पर पल न झावेगा । उसे घपने विचारों पर जो श्राधिपत्य ्लोता है, चहु शायद किसी संयमी साएइु सें भी न हो । सन्तोप का पुतला सच की मूर्ति, सच्चा घाझाकारी, गरकज्ञ उसमें तसाम मा मौजूद ऐोती हैं । खैडटर के सी एक दिन सारय सगे है बह । रू उस पर सी रोशनी छोती है, दरस उस पर हरियाली छाती है, प्रकक सं नवी 'झच्द्राइ्यों क. की दिलिचरिपयों में उसका भी ट्स्सा है। सगर इस गार दी नहीं जागते । इसको घंघेरी तकदीर सें रोशनों का जलदा करी दिखाई नर श्र नहीं देता 1 टूसके पीले चेट्रे पर सुसकराहट वी रोशनी नजर नददीं घ्ाती । इसके ,लिए सूखा-सावन हैं कभी हरा भादों नहों 1 साया फातद्द बत ऐपे ही एक , जीद थे | दष्ते हैं सफप्य पर उसके नास का भी कुच धसर पदता है । पनइचन्द की दधा सें यद्द दात यधाध सिद्ध न हो सकी । यदि उन्हें 'हारचन्दा कटा जाय, हो चराचितू यह यु कक न के सिंगर से हार, जोदस में उनके लिए चारों घोर हार घोर निराशाएँ हो थीं | छएका एक सी नहीं रुदडियों दीन, माई एक सी नहीं स्डाइयाँ दो, गांड में




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