गुण - गीतिका | Gun-geetika

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Gun-geetika by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जय गुण गीतिका . ! १०--सथारो मैं करस्या हो श्रासक सेणा साभलो, काढ़ी छे मुख चाय । श्रावक॒ कांगद हो धीकासेर मोफले, स्पामीजी ने वेग घुलाय ॥ पूज्य० ॥| श१--कांगद चाच्या हो स्यामी “'रायचन्दजी,' कीनो घुरत उिद्ार 1 नागौर पधारिया दो चरण पृद्यरा भेटिया, पूज्य. दप्या. तिणयार ॥ पूपय० ॥ १०--तपस्या.. मांडी दो... सलेसणा, कीना ण्कास्तर इग्यार। एक चेला रो द्दो कियो पूथयजी पारणों, विगय... हणा.. परिद्दार (| पूज्य० ॥ १३--दूजे बेलारो हो कीजे पृश्यजी पारणो, को से तो कियो रे सवार इरगिज श्ट्दार हो तीनो री दायो नहीं, चढियो परिणाम पेले पार ॥ पूप्य० ॥) १४--स्वामी 'रायचन्दली' दो ऊद्दे पूजय नी यीजे पारणो, श्रायक कह जोडी हाथ । राजपंय पीधी हो पूदयजी छु पिनेती, पिण मुख्य एक चाहत ॥ प्रूय० ॥ श्श--सयव श्ठारे दो. ययें. तेपने, चैत्र पूसम धुकयार 1 घर नागीर में हो चारु सबरा यृन्द में, क्यों जाय जीय सवार ॥ पूझ्य० ॥ हइ-नगर ना. लोफ दो टोने संघरे, दर्शन पूपयत्री सु राग ।




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